エピソード

  • ‘तुम भूल न जाना हिन्दी’ विनोद नायक
    2025/10/16

    “सुरता साहित्य की धरोहर” के आज के विशेष अंक में प्रस्तुत है —

    “स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी भाषा का योगदान — ‘तुम भूल न जाना हिन्दी’”,

    लेखक विनोद नायक द्वारा रचित एक प्रेरक आलेख,

    जो हिन्दी भाषा की भूमिका को स्वतंत्रता संग्राम के परिप्रेक्ष्य में नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।


    यह आलेख बताता है कि जैसे सूर्य का प्रकाश सृष्टि को जीवन देता है,

    वैसे ही भाषा — विशेषकर हिन्दी — राष्ट्र की आत्मा और उसकी पहचान है।

    हिन्दी ने केवल संवाद का माध्यम नहीं दिया, बल्कि

    क्रांतिकारियों के घोषणापत्र, कवियों के गीतों और लेखकों के लेखों के माध्यम से

    आज़ादी की लौ को प्रज्वलित किया।


    इस आलेख में हम उन शब्दों की शक्ति को महसूस करेंगे

    जिन्होंने एकता, देशभक्ति और स्वाभिमान की भावना को जागृत किया —

    और समझेंगे कि क्यों हमें आज भी याद रखना चाहिए —

    “तुम भूल न जाना हिन्दी।”


    📖

    लेखक: विनोद नायक

    प्रस्तुति: सुरता साहित्य की धरोहर पॉडकास्ट

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    14 分
  • डॉ. अर्चना दुबे की संवेदनशील कहानी “किन्नर का आशीर्वाद
    2025/10/15

    आज के “सुरता साहित्य की धरोहर” पॉडकास्ट में प्रस्तुत है —

    डॉ. अर्चना दुबे की संवेदनशील कहानी “किन्नर का आशीर्वाद”


    यह कहानी समाज की उस परत को उजागर करती है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं —

    किन्नर समुदाय की करुणा, प्रेम और उनके अस्तित्व का आदर।


    पंडित रामप्रसाद के घर जब नवजात शिशु की किलकारियाँ गूँजती हैं,

    तब “शांताबाई” अपने आशीर्वाद के साथ आती हैं —

    लेकिन इस आशीर्वाद के पीछे छिपी भावनाएँ समाज के लिए एक गहरा प्रश्न छोड़ जाती हैं —

    क्या हमने कभी उनके “आशीर्वाद” का सच्चा अर्थ समझा है?


    सुनिए — एक ऐसी कहानी जो करुणा, मातृत्व और स्वीकृति की नई परिभाषा गढ़ती है।


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    19 分
  • डॉ. अशोक आकाश का भावनाओं से भरा काव्यपाठ “किन्नर व्यथा”
    2025/10/14

    सुरता साहित्य की धरोहर” के इस विशेष एपिसोड में प्रस्तुत है — डॉ. अशोक आकाश का भावनाओं से भरा काव्यपाठ “किन्नर व्यथा”

    यह खंडकाव्य, 20 भागों में विस्तृत, समाज से बहिष्कृत एक वर्ग — किन्नर समुदाय — के जीवन, संघर्ष, और आत्मसम्मान की मार्मिक गाथा है।


    इस कविता के माध्यम से कवि ने दिखाया है कि


    जब "ममता का सागर मां भी जब मूरत बन रह जाती",

    तो संवेदना किस मोड़ पर समाज से पीछे छूट जाती है।


    “किन्नर व्यथा” केवल पीड़ा का बयान नहीं, बल्कि स्वीकृति, पहचान और प्रेम की पुकार है — एक ऐसी कविता जो मनुष्य होने की सच्ची परिभाषा से हमें रूबरू कराती है।


    सुनिए — संवेदना, सम्मान और स्वाभिमान की इस सशक्त काव्यधारा को, डॉ. अशोक आकाश के स्वर में।


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    17 分
  • छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा: संस्कृति और प्रेम की झलक”।
    2025/10/14

    आज के “सुरता साहित्य की धरोहर” पॉडकास्ट में हम सुनेंगे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ा एक विशेष आलेख — छत्तीसगढ़ी लोकगीत करमा: संस्कृति और प्रेम की झलक”

    यह लेख, श्रीमती तुलसी तिवारी द्वारा लिखा गया है और सुरता साहित्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ है।

    इस एपिसोड में हम जानेंगे कि करमा गीत किस प्रकार केवल एक नृत्य या लोकगान नहीं, बल्कि आदिवासी जीवन की संवेदनाओं, प्रेम, श्रृंगार, और श्रम की लय का जीवंत प्रतीक है।

    यह गीत हमें बताता है कि कैसे उरांव, गोंड और कोरवा समुदायों ने करमा पर्व के माध्यम से प्रकृति, प्रेम और लोक परंपरा का उत्सव मनाया।


    सुनिए इस एपिसोड में — संस्कृति की गूंज, करमा ढोलक की थाप, और लोकगीतों की सजीव आत्मा।


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    19 分
  • छत्तीसगढ़ी बाल कहानी:मुर्रा के लाडू
    2025/10/13

    “मुर्रा के लाडू” एक छत्तीसगढ़ी लोककथा है जो बच्चों के मन में

    ईमानदारी, परिश्रम और आत्मसम्मान का भाव जगाती है।

    लेखक रमेशकुमार सिंह चौहान की यह कहानी केवल मनोरंजन नहीं,

    बल्कि जीवन के गहरे मूल्यों का पाठ भी देती है।


    इस कथा में छोटे लइका राजू के संघर्ष और सच्चाई के प्रतीक ‘मुर्रा के लाडू’

    हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची खुशी मेहनत के रास्ते से ही मिलती है।


    🎧 सुनिए इस मनभावन कहानी को सुरता साहित्य के बालकथा विशेषांक में,

    जहाँ हर कहानी में बसता है छत्तीसगढ़ का मन।


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    9 分
  • धरती की पीड़ा और जीवन की आशा — डुमन लाल ध्रुव की दो अनमोल हिंदी कविताएँ
    2025/10/13

    सुरता साहित्य की धरोहर के इस एपिसोड में सुनिए संवेदनशील कवि डुमन लाल ध्रुव की दो हृदयस्पर्शी कविताएँ —

    “पथरीली ज़मीन” और “ज़िंदगी में क्या होगा”


    इन रचनाओं में कवि ने धरती की पीड़ा, श्रम की महत्ता और जीवन की अदम्य आशा को सहज भाषा में गहन संवेदना के साथ व्यक्त किया है।

    यह काव्यपाठ हमें यह अहसास कराता है कि कठिन परिस्थितियों में भी जीवन अपने अर्थ और सुंदरता को खोज ही लेता है।


    🎧 प्रस्तुतकर्ता: सुरता साहित्य की धरोहर पॉडकास्ट टीम

    🪶 कवि: डुमन लाल ध्रुव

    🎙️ वाचन: उज्जवला साहू


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    9 分
  • “ओज की वाणी: कवि सुनिल शर्मा ‘नील’ का राष्ट्रभाव से ओतप्रोत काव्य पाठ”
    2025/10/13

    “सुरता साहित्य की धरोहर” के इस विशेष अंक में प्रस्तुत है —

    ओज के सशक्त हस्ताक्षर कवि सुनिल शर्मा ‘नील’ का राष्ट्रभक्ति से भरा काव्य पाठ।


    उनकी कविताओं में झलकता है —

    मां भारती के प्रति समर्पण,

    शहीदों के बलिदान का गौरव,

    नारी अस्मिता की गरिमा,

    और समाज में जागृति का आह्वान।


    इस अंक में सुनिए —

    👉 देश धर्म के रक्षण हित

    👉 पुलवामा के वीरों को समर्पित ओजस्वी रचना

    👉 भारतीय सेना के शौर्य का गौरवगीत

    👉 लव जिहाद व देशद्रोह पर चेतावनी

    👉 5 अगस्त — जब धरा से 370 हटी

    👉 नारी अस्मिता व माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्व


    हर पंक्ति में है एक ज्वाला — जो जाग्रति का प्रतीक है।

    कवि ‘नील’ के शब्दों में है वही शक्ति, जो मन में देश के प्रति आस्था का दीप प्रज्वलित करती है।


    🎧 सुनिए और अनुभव कीजिए —


    “ओज की वाणी” — केवल कविता नहीं, एक राष्ट्र का स्वर।


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    कवि सुनिल शर्मा ‘नील’ का यूटृयूब चैनल kavisammelan world



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    15 分
  • डॉ. परदेशी राम वर्मा की कहानी: पानी
    2025/10/12

    पानी” — एक ऐसी कहानी है, जहाँ खेतों की नमी के साथ इंसान की अस्मिता, प्रेम, और संघर्ष की भी कहानी बहती है।


    डॉ. परदेशी राम वर्मा इस कथा में दिखाते हैं कि छत्तीसगढ़ का गाँव ‘खरखरा’ केवल भूमि का टुकड़ा नहीं,

    बल्कि सामाजिक बदलाव का प्रतीक है।


    पिता सोहन सतनामी की अधूरी यात्रा और बेटे बिजलाल की संघर्षशील कहानी

    इस बात को उजागर करती है कि

    ‘बराबरी का हक़ सिर्फ़ कहा नहीं जाता, जिया भी जाता है।’


    सुनिए — एक ऐसी कहानी जो मिट्टी की खुशबू, सामाजिक चेतना और परिवर्तन की लहर लेकर आती है।


    📢 “सुरता साहित्य की धरोहर” पर हम छत्तीसगढ़ी लोकजीवन, रचनाकारों और उनकी विरासत को स्वर देते हैं।


    🎧 अब सुनिए — “कहानी: पानी” — डॉ. परदेशी राम वर्मा की लेखनी से।

    कहानी का परिचय (कथ्य-सार):


    “पानी” एक गाँव — खरखरा की कहानी है,

    जहाँ हर दस साल में झगड़ा, बलवा और जातिगत टकराव होता रहता है।


    कहानी दो पीढ़ियों के इर्द-गिर्द घूमती है —

    पहले सोहन सतनामी की, जिसने प्रेम और सामाजिक बंधनों के बीच अपनी जान गंवाई,

    और फिर उसके बेटे बिजलाल की, जो पिता की मृत्यु के बाद भी

    गाँव में बराबरी और अपने हिस्से के ‘पानी’ के लिए संघर्ष करता है।


    यह कथा केवल एक संघर्ष की नहीं,

    बल्कि छत्तीसगढ़ के समाज में समानता, प्रेम और न्याय की मिट्टी से निकली चेतना की कहानी है।


    कहानी हमें बताती है कि —

    “पानी केवल खेतों में नहीं बहता, वह इंसान की अस्मिता और अधिकार की धारा भी है।”

    🎧 अब सुनिए — “कहानी: पानी” — डॉ. परदेशी राम वर्मा की लेखनी से।

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    27 分