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डॉ. अशोक आकाश का भावनाओं से भरा काव्यपाठ “किन्नर व्यथा”

डॉ. अशोक आकाश का भावनाओं से भरा काव्यपाठ “किन्नर व्यथा”

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सुरता साहित्य की धरोहर” के इस विशेष एपिसोड में प्रस्तुत है — डॉ. अशोक आकाश का भावनाओं से भरा काव्यपाठ “किन्नर व्यथा”

यह खंडकाव्य, 20 भागों में विस्तृत, समाज से बहिष्कृत एक वर्ग — किन्नर समुदाय — के जीवन, संघर्ष, और आत्मसम्मान की मार्मिक गाथा है।


इस कविता के माध्यम से कवि ने दिखाया है कि


जब "ममता का सागर मां भी जब मूरत बन रह जाती",

तो संवेदना किस मोड़ पर समाज से पीछे छूट जाती है।


“किन्नर व्यथा” केवल पीड़ा का बयान नहीं, बल्कि स्वीकृति, पहचान और प्रेम की पुकार है — एक ऐसी कविता जो मनुष्य होने की सच्ची परिभाषा से हमें रूबरू कराती है।


सुनिए — संवेदना, सम्मान और स्वाभिमान की इस सशक्त काव्यधारा को, डॉ. अशोक आकाश के स्वर में।


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