• अर्जुनविषादयोग: मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक समाधान
    2025/10/01

    “कृष्णवाणी पॉडकास्ट” की आठवीं कड़ी में हम गहराई से समझते हैं अर्जुनविषादयोग को, जो केवल युद्धभूमि की कहानी नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का भी दर्पण है।

    महाभारत में अर्जुन जिस गहरे मानसिक संघर्ष और निराशा से गुजरता है, वही आज के आधुनिक जीवन में हमें तनाव, चिंता और अवसाद के रूप में दिखाई देता है।

    इस एपिसोड में आप जानेंगे –

    • अर्जुन का मानसिक संकट और आज की मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ।
    • क्यों बाहरी साधन (भौतिक उपाय) स्थायी समाधान नहीं दे पाते।
    • आत्मज्ञान, आत्मा की अमरता और निष्काम कर्म कैसे बनते हैं मानसिक शांति के आधार।
    • गीता का दृष्टिकोण आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए कितना प्रासंगिक है।

    यह कड़ी आपको याद दिलाएगी कि असली मानसिक स्वास्थ्य आत्मिक जागरूकता, धैर्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही संभव है।


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    इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- ⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠"अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠

    इसे पढ़ना चाहे तो आप इस सीरिज के ईपुस्तकें पढ़ सकते हैं-⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠"आध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग"⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠⁠

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    20 分
  • "अर्जुनविषादयोग: नेतृत्व और नैतिक प्रबंधन | KrishnaVani Podcast"
    2025/09/24

    “कृष्णवाणी पॉडकास्ट” के इस एपिसोड में हम बात करते हैं भगवद्गीता के पहले अध्याय ‘अर्जुनविषादयोग’ की।

    अर्जुन का युद्धभूमि पर आया संकट केवल एक योद्धा की दुविधा नहीं था, बल्कि नेतृत्व और प्रबंधन की दुनिया के लिए गहरी सीख है।

    इस चर्चा में आप जानेंगे –

    • कैसे अर्जुन का नैतिक संघर्ष आधुनिक कार्यस्थलों की चुनौतियों से मेल खाता है।
    • क्यों नेताओं को केवल लाभ पर नहीं, बल्कि नैतिक सिद्धांतों और दीर्घकालिक उद्देश्यों पर ध्यान देना चाहिए।
    • निष्काम कर्म और मानसिक संतुलन कैसे एक नेता को सफल बनाते हैं।

    यह एपिसोड हर उस व्यक्ति के लिए है जो नेतृत्व, प्रबंधन और आध्यात्मिक मूल्यों को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहता है।

    सुनिए और जानिए कि कैसे गीता के सिद्धांत आधुनिक जीवन और कार्यक्षेत्र में मार्गदर्शन दे सकते हैं।

    #KrishnaVaniPodcast #ArjunVishadYog #BhagavadGita #Leadership #Management #Ethics #कृष्णवाणी #अर्जुनविषादयोग #नैतिकनेतृत्व #गीता_ज्ञान #KarmaYoga


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    14 分
  • आधुनिक जीवन में अर्जुनविषादयोग की प्रासंगिकता
    2025/09/17

    कृष्णवाणी के इस कड़ी में में हम भगवद्गीता के प्रथम अध्याय – अर्जुनविषादयोग की शिक्षाओं को आधुनिक जीवन की चुनौतियों से जोड़कर देखते हैं।

    कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर अर्जुन का मोह और नैतिक द्वंद्व आज भी हर इंसान के भीतर दोहराता है –

    चाहे करियर और परिवार के बीच निर्णय लेना हो, समाज के प्रति दायित्व निभाना हो, या फिर मानसिक तनाव और अवसाद से जूझना हो।

    श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन हमें बताता है कि समाधान बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है।

    आत्मज्ञान, निष्काम कर्म और धैर्य ही वह मार्ग हैं, जो आधुनिक जीवन की जटिलताओं में भी शांति और संतुलन प्रदान करते हैं।

    यह एपिसोड हर श्रोता को यह सोचने के लिए प्रेरित करेगा कि कैसे अर्जुन की तरह हम भी अपने जीवन के संघर्षों का समाधान आत्मिक शक्ति से पा सकते हैं।

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    13 分
  • कर्म, धर्म और कर्तव्य
    2025/09/12

    इस एपिसोड में हम गहराई से समझते हैं अर्जुन के विषाद (संकोच और मानसिक द्वंद्व) को, जो केवल एक योद्धा का संकट नहीं था, बल्कि हर इंसान के जीवन में आने वाले कर्तव्य और भावनाओं के संघर्ष का प्रतीक है।

    श्रीमद्भगवद्गीता के इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग का अद्वितीय संदेश देते हैं। वे समझाते हैं कि सच्चा कर्मयोग वही है जिसमें व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करता है, बिना फल की चिंता किए।

    हम इस चर्चा में देखेंगे:

    • अर्जुन का युद्ध से इंकार और उसका गहरा कारण
    • स्वधर्म और कर्तव्य का महत्व
    • निष्काम कर्म का सिद्धांत
    • आत्मज्ञान और मुक्ति की ओर गीता का मार्गदर्शन

    यह एपिसोड हमें याद दिलाता है कि जीवन के हर संघर्ष में समाधान कर्मफल की आसक्ति छोड़कर केवल अपने धर्म का पालन करने में ही है।

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    18 分
  • अर्जुन का विषाद: आत्मा-शरीर द्वंद्व और गीता का ज्ञान
    2025/09/06

    यह एपिशोड अर्जुन के विषाद और आत्मा-शरीर के द्वंद्व पर केंद्रित है, जैसा कि भगवद गीता में वर्णित है। यह बताता है कि अर्जुन की दुविधा केवल युद्ध से संबंधित नहीं थी, बल्कि एक गहरा नैतिक और आध्यात्मिक संघर्ष था। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा शाश्वत और अविनाशी है, जबकि शरीर नश्वर है, और यह ज्ञान उसे अपने मोह और शोक से उबरने में मदद करता है। यह पाठ आत्मिक स्वतंत्रता के विचार पर भी प्रकाश डालता है, जो व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है। अंततः, यह अर्जुन के संकट को जीवन के सार्वभौमिक संघर्षों के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसके समाधान के लिए आत्मा और शरीर के द्वैत को समझना महत्वपूर्ण है।

    इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह सुन सकते हैं- ⁠⁠⁠⁠⁠"अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" (Auidiobook)⁠⁠⁠⁠⁠

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    13 分
  • अर्जुन का विषाद योग आत्मा की अमरता और जीवन का गहरा सच
    2025/08/31

    यह अंश अर्जुन के विषाद और आत्मा-शरीर के द्वैत पर केंद्रित है, जैसा कि रमेश चौहान की पुस्तक श्रृंखला "गीता के 18 योग" से लिए गए पॉडकास्ट एपिसोड "कृष्ण वाणी" में बताया गया है। इसमें अर्जुन की दुविधा का विश्लेषण किया गया है, जो युद्ध के मैदान में अपने प्रियजनों को देखकर कर्तव्य और भावनाओं के बीच फंस गया था। श्रीकृष्ण उसे आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता का ज्ञान देते हैं, यह समझाते हुए कि आत्मा शाश्वत है और शरीर केवल एक अस्थायी वस्त्र है। यह ज्ञान अर्जुन को शारीरिक मोह से ऊपर उठकर आत्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे वह अपने कर्तव्यों को निभा सके। अंततः, यह पाठ जीवन के नैतिक और दार्शनिक संघर्षों को आत्मा और शरीर के द्वैत को समझने के माध्यम से हल करने का मार्ग दिखाता है।

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    16 分
  • भगवद्गीता कुरुक्षेत्र से कर्तव्य पथ तक एक कालातीत मार्गदर्शन
    2025/08/29

    इस कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के उस पहलू को समझते हैं, जो केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास की धरोहर है। यह एपिसोड इस बात पर प्रकाश डालता है कि गीता का उपदेश महाभारत के भीष्म पर्व में, धर्मयुद्ध की घड़ी में, अर्जुन के मानसिक द्वंद्व को सुलझाने के लिए दिया गया था।

    एपिसोड में बार-बार प्रयुक्त शब्द “स्रोत” से आशय है — लेखक रमेश चौहान द्वारा लिखित आलेख “श्रीमद्भगवद्गीता का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ”, जिसके अंशों पर यह ऑडियो आधारित है।

    इस चर्चा में गीता का सांस्कृतिक महत्व, धर्म और कर्तव्य की व्याख्या, और भक्ति, ज्ञान, कर्म तथा त्याग का समन्वय प्रस्तुत किया गया है। साथ ही, एक राजा की लघुकथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि गीता का संदेश केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक विकास का भी मार्गदर्शक है।

    अंततः, यह कड़ी यह स्पष्ट करती है कि गीता का दर्शन व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतोष की ओर ले जाता है, और समाज के साथ-साथ आत्मा के उत्थान के लिए भी अनिवार्य है।

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    10 分
  • कृष्णवाणी के आईने में गीता के 18 योग विषाद से मोक्ष तक की आत्म यात्रा
    2025/08/24

    यह एपिशोडद्य श्रीमद्भगवद्गीता के 18 योगों का विस्तृत परिचय देता है, जो जीवन के विभिन्न आध्यात्मिक और व्यावहारिक पहलुओं को संबोधित करते हैं। प्रत्येक "योग" एक अध्याय का प्रतिनिधित्व करता है जो आत्म-साक्षात्कार, कर्तव्य पालन, और मोक्ष प्राप्ति के विभिन्न मार्गों जैसे कर्म, ज्ञान, और भक्ति पर केंद्रित है। यह पाठ जीवन की समस्याओं के समाधान, आंतरिक शांति, और व्यक्तिगत विकास के लिए गीता के सिद्धांतों के महत्व को उजागर करता है। अंततः, यह स्रोत भारतीय संस्कृति में गीता के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है, इसे नैतिकता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत करता है।

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    12 分