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भगवद्गीता कुरुक्षेत्र से कर्तव्य पथ तक एक कालातीत मार्गदर्शन

भगवद्गीता कुरुक्षेत्र से कर्तव्य पथ तक एक कालातीत मार्गदर्शन

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इस कड़ी में हम श्रीमद्भगवद्गीता के उस पहलू को समझते हैं, जो केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास की धरोहर है। यह एपिसोड इस बात पर प्रकाश डालता है कि गीता का उपदेश महाभारत के भीष्म पर्व में, धर्मयुद्ध की घड़ी में, अर्जुन के मानसिक द्वंद्व को सुलझाने के लिए दिया गया था।

एपिसोड में बार-बार प्रयुक्त शब्द “स्रोत” से आशय है — लेखक रमेश चौहान द्वारा लिखित आलेख “श्रीमद्भगवद्गीता का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ”, जिसके अंशों पर यह ऑडियो आधारित है।

इस चर्चा में गीता का सांस्कृतिक महत्व, धर्म और कर्तव्य की व्याख्या, और भक्ति, ज्ञान, कर्म तथा त्याग का समन्वय प्रस्तुत किया गया है। साथ ही, एक राजा की लघुकथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि गीता का संदेश केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक विकास का भी मार्गदर्शक है।

अंततः, यह कड़ी यह स्पष्ट करती है कि गीता का दर्शन व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतोष की ओर ले जाता है, और समाज के साथ-साथ आत्मा के उत्थान के लिए भी अनिवार्य है।

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