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एकादशोपनिषद प्रसाद

एकादशोपनिषद प्रसाद

著者: रमेश चौहान
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このコンテンツについて

“एकादशोपनिषद प्रसाद” श्रृंखला 11 प्राचीनतम और महत्वपूर्ण उपनिषदों के गहन ज्ञान को सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। इस श्रृंखला का उद्देश्य इन उपनिषदों के गूढ़ दार्शनिक विचारों को समझने और आत्मसात करने में पाठकों की सहायता करने का है। "प्रसाद" शब्द इन उपनिषदों के ज्ञान को दिव्य आशीर्वाद स्वरूप प्रस्तुत करने का संकेत देता है। यह ज्ञान आत्मज्ञान, मोक्ष और जीवन के गहरे रहस्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है।रमेश चौहान スピリチュアリティ
エピソード
  • “संभूत-विनाश: ज्ञान और मोक्ष | एकादशोपनिषद प्रसाद”
    2025/10/12

    ईशावास्योपनिषद् के चौदहवें श्लोक में वर्णित “संभूति” और “विनाश” का रहस्य —

    यह एपिसोड हमें सिखाता है कि सृष्टि (संभूति) और विनाश (असंभूति) दोनों का सही ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।


    इस गहन संवाद में, रमेश चौहान स्पष्ट करते हैं कि

    👉 विनाश का ज्ञान हमें संसार की नश्वरता और अस्थिरता को समझने में सहायता देता है,

    जबकि

    👉 संभूति का ज्ञान हमें उस अविनाशी, शाश्वत ब्रह्म की ओर ले जाता है —

    जहाँ से मुक्ति संभव है।


    यह एपिसोड उपनिषदों, भगवद गीता और मुण्डक-बृहदारण्यक उपनिषदों के विचारों से भी सुसंगति स्थापित करता है, यह दर्शाते हुए कि सृष्टि और विनाश का संतुलन ही ज्ञान और मोक्ष का सेतु है।


    ✨ अब से “एकादशोपनिषद प्रसाद” पॉडकास्ट का नया एपिसोड

    हर सोमवार को प्रकाशित होगा।

    आध्यात्मिक चिंतन और आत्मबोध की इस यात्रा में हमारे साथ जुड़ें।

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    22 分
  • संभूत-असंभूत: ईशावास्योपनिषद् का द्वंद्व ज्ञान
    2025/10/06

    "एकादशोपनिषद प्रसाद" के इस दसवें अध्याय में हम ईशावास्योपनिषद के द्वादश और त्रयोदश श्लोकों के गहन अर्थ की चर्चा करेंगे — संभूत (सृष्टि) और असंभूत (विनाश) के द्वंद्व और उनके समग्र संतुलन को समझते हुए।

    इन श्लोकों में उपनिषद यह सिखाता है कि जीवन में केवल सृष्टि या विनाश के प्रति आसक्ति हमें अंधकार की ओर ले जाती है। सृष्टि भौतिक जीवन का प्रतीक है, और विनाश आत्मिक बोध का द्वार। जब व्यक्ति इन दोनों के संतुलन को समझ लेता है, तभी वह मोक्ष की दिशा में अग्रसर होता है।

    इस चर्चा में गीता और मुण्डक उपनिषद के सन्दर्भों के साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि ब्रह्म ही सृष्टि और विनाश दोनों का मूल है। सृष्टि और विनाश के पार जो सत्य है — वही आत्मा का परम स्वरूप है।

    यह एपिसोड श्रोताओं को यह सोचने के लिए प्रेरित करेगा कि जीवन में निर्माण और विनाश, दोनों ही एक ही ईश्वरीय लीला के दो पहलू हैं — और इन्हें समझना ही सच्चा आत्मज्ञान है।

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    17 分
  • विद्या-अविद्या समन्वय से मोक्ष: ईशोपनिषद सार
    2025/09/30

    यह एपिशोड़ ईशोपनिषद प्रसाद नामक पुस्तक श्रृंखला के एक अंश से लिया गया है, जो विद्या और अविद्या से मोक्ष के सिद्धांत पर केंद्रित है। यह पाठ ईशोपनिषद के ग्यारहवें श्लोक ("विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह...") की गहन व्याख्या प्रस्तुत करता है, जिसका अर्थ है कि जो व्यक्ति विद्या (आत्मज्ञान) और अविद्या (सांसारिक ज्ञान) दोनों को एक साथ जानता है, वह अविद्या से सांसारिक बंधनों को पार करता है और विद्या से अमरत्व (मोक्ष) प्राप्त करता है। यह व्याख्या स्पष्ट करती है कि समन्वय का सिद्धांत आवश्यक है, जहाँ अविद्या भौतिक जीवन की बाधाओं को पार करने में मदद करती है, जबकि केवल विद्या ही मोक्ष की ओर ले जाती है। स्रोत अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों जैसे भगवद गीता और मुण्डक उपनिषद के संदर्भों के साथ इस दर्शन की तुलना करके इस सिद्धांत की पुष्टि करता है।

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    13 分
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