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एकादशोपनिषद प्रसाद

एकादशोपनिषद प्रसाद

著者: रमेश चौहान
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このコンテンツについて

“एकादशोपनिषद प्रसाद” श्रृंखला 11 प्राचीनतम और महत्वपूर्ण उपनिषदों के गहन ज्ञान को सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। इस श्रृंखला का उद्देश्य इन उपनिषदों के गूढ़ दार्शनिक विचारों को समझने और आत्मसात करने में पाठकों की सहायता करने का है। "प्रसाद" शब्द इन उपनिषदों के ज्ञान को दिव्य आशीर्वाद स्वरूप प्रस्तुत करने का संकेत देता है। यह ज्ञान आत्मज्ञान, मोक्ष और जीवन के गहरे रहस्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है।रमेश चौहान スピリチュアリティ
エピソード
  • केनोपनिषद – तृतीय खण्ड (ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार का भंग)
    2025/12/21

    इस एपिसोड में प्रस्तुत है एकादशोपनिषद प्रसाद के अंतर्गत
    केनोपनिषद का तृतीय खण्ड — एक गहन और प्रेरक कथा, जो ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार की सीमाओं को उजागर करती है।

    असुरों पर विजय के बाद देवताओं में उत्पन्न हुआ अहंकार उन्हें यह भ्रम देता है कि शक्ति और सफलता उनकी अपनी है।
    इसी भ्रम को तोड़ने के लिए ब्रह्म एक रहस्यमयी यक्ष के रूप में प्रकट होते हैं। अग्नि और वायु जैसे शक्तिशाली देवता भी ब्रह्म की इच्छा के बिना एक तिनके को न जला पाते हैं, न हिला पाते हैं। अंततः इंद्र को देवी उमा के माध्यम से यह बोध होता है कि समस्त विजय, सामर्थ्य और तेज का वास्तविक स्रोत केवल ब्रह्म ही है।

    यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार अज्ञान है, और विनम्रता ही आत्मज्ञान का प्रथम चरण। ब्रह्म की पहचान बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि अंतःकरण की जागरूकता से होती है।

    सुनिए एकादशोपनिषद प्रसादमें
    केनोपनिषद –तृतीय खण्ड की यह दिव्य कथा।
    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।

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    15 分
  • द्वितीय प्रसाद — केनोपनिषद् द्वितीयः खण्डः (ब्रह्म का स्वरूप: ज्ञान–अज्ञान का रहस्य)
    2025/12/14

    इस एपिसोड में प्रस्तुत है एकादशोपनिषद प्रसाद का द्वितीय प्रसाद,
    जो केनोपनिषद् के द्वितीयः खण्डः पर आधारित एक गहन दार्शनिक विश्लेषण है।

    यह खण्ड इस मूल प्रश्न को सामने रखता है —
    क्या ब्रह्म को जाना जा सकता है?
    और यदि कोई यह कहे कि उसने ब्रह्म को पूरी तरह जान लिया है, तो उपनिषद उसे अज्ञानी क्यों कहता है?

    केनोपनिषद् स्पष्ट करता है कि ब्रह्म असीम, अनंत और वाणी–विचार की सीमाओं से परे है।
    सच्चा ज्ञान अहंकारपूर्ण दावे में नहीं, बल्कि इस विनम्र स्वीकार में निहित है कि ब्रह्म को पूरी तरह जाना नहीं जा सकता।

    यह एपिसोड समझाता है कि आत्मज्ञान ही अमरत्व और जन्म–मृत्यु के चक्र से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है, और इसी जीवन में ब्रह्म की अनुभूति ही परम सत्य है।

    सुनिए
    एकादशोपनिषद प्रसाद में
    केनोपनिषद् द्वितीयः खण्डः : ज्ञान और अज्ञान का सूक्ष्म रहस्य।
    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।

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  • केनोपनिषद प्रथम खण्ड — श्रोत्रस्य श्रोत्रं: ब्रह्म का गूढ़ रहस्य”
    2025/12/07

    इस एपिसोड में हम केनोपनिषद के प्रथम खण्ड का गूढ़ रहस्य समझते हैं—

    जहाँ उपनिषद उस परम प्रश्न का उत्तर देता है:

    “किसके द्वारा?”


    कौन हमारी वाणी को शक्ति देता है?

    किसके द्वारा मन सोचता है?

    कौन है जो कान, नेत्र और प्राण को जीवन देता है?


    उपनिषद का उत्तर है—

    ब्रह्म:

    श्रोत्रस्य श्रोत्रम् — कान का कान,

    नेत्रस्य नेत्रम् — आँख का आँख,

    वाणी की वाणी और प्राण का प्राण।


    ब्रह्म इंद्रियों से परे है,

    परंतु उन्हीं के माध्यम से प्रकट होता है।

    न वह “ज्ञात” है,

    न “अज्ञात”—

    वह दोनों से परे एक परम चेतना है।


    उपनिषद बताता है कि

    ब्रह्म का ज्ञान विचार से नहीं,

    बल्कि आत्म-अनुभूति से प्राप्त होता है,

    और यही अनुभूति मृत्यु के बंधन को काटकर

    अमरत्व की ओर ले जाती है।


    सुनिए इस दिव्य प्रसाद को—

    एकादशोपनिषद प्रसाद में।

    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।


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    18 分
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