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केनोपनिषद – तृतीय खण्ड (ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार का भंग)

केनोपनिषद – तृतीय खण्ड (ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार का भंग)

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इस एपिसोड में प्रस्तुत है एकादशोपनिषद प्रसाद के अंतर्गत
केनोपनिषद का तृतीय खण्ड — एक गहन और प्रेरक कथा, जो ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार की सीमाओं को उजागर करती है।

असुरों पर विजय के बाद देवताओं में उत्पन्न हुआ अहंकार उन्हें यह भ्रम देता है कि शक्ति और सफलता उनकी अपनी है।
इसी भ्रम को तोड़ने के लिए ब्रह्म एक रहस्यमयी यक्ष के रूप में प्रकट होते हैं। अग्नि और वायु जैसे शक्तिशाली देवता भी ब्रह्म की इच्छा के बिना एक तिनके को न जला पाते हैं, न हिला पाते हैं। अंततः इंद्र को देवी उमा के माध्यम से यह बोध होता है कि समस्त विजय, सामर्थ्य और तेज का वास्तविक स्रोत केवल ब्रह्म ही है।

यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार अज्ञान है, और विनम्रता ही आत्मज्ञान का प्रथम चरण। ब्रह्म की पहचान बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि अंतःकरण की जागरूकता से होती है।

सुनिए एकादशोपनिषद प्रसादमें
केनोपनिषद –तृतीय खण्ड की यह दिव्य कथा।
✨ नया एपिसोड हर सोमवार।

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