• केनोपनिषद – तृतीय खण्ड (ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार का भंग)
    2025/12/21

    इस एपिसोड में प्रस्तुत है एकादशोपनिषद प्रसाद के अंतर्गत
    केनोपनिषद का तृतीय खण्ड — एक गहन और प्रेरक कथा, जो ब्रह्म की सर्वोच्चता और अहंकार की सीमाओं को उजागर करती है।

    असुरों पर विजय के बाद देवताओं में उत्पन्न हुआ अहंकार उन्हें यह भ्रम देता है कि शक्ति और सफलता उनकी अपनी है।
    इसी भ्रम को तोड़ने के लिए ब्रह्म एक रहस्यमयी यक्ष के रूप में प्रकट होते हैं। अग्नि और वायु जैसे शक्तिशाली देवता भी ब्रह्म की इच्छा के बिना एक तिनके को न जला पाते हैं, न हिला पाते हैं। अंततः इंद्र को देवी उमा के माध्यम से यह बोध होता है कि समस्त विजय, सामर्थ्य और तेज का वास्तविक स्रोत केवल ब्रह्म ही है।

    यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार अज्ञान है, और विनम्रता ही आत्मज्ञान का प्रथम चरण। ब्रह्म की पहचान बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि अंतःकरण की जागरूकता से होती है।

    सुनिए एकादशोपनिषद प्रसादमें
    केनोपनिषद –तृतीय खण्ड की यह दिव्य कथा।
    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।

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  • द्वितीय प्रसाद — केनोपनिषद् द्वितीयः खण्डः (ब्रह्म का स्वरूप: ज्ञान–अज्ञान का रहस्य)
    2025/12/14

    इस एपिसोड में प्रस्तुत है एकादशोपनिषद प्रसाद का द्वितीय प्रसाद,
    जो केनोपनिषद् के द्वितीयः खण्डः पर आधारित एक गहन दार्शनिक विश्लेषण है।

    यह खण्ड इस मूल प्रश्न को सामने रखता है —
    क्या ब्रह्म को जाना जा सकता है?
    और यदि कोई यह कहे कि उसने ब्रह्म को पूरी तरह जान लिया है, तो उपनिषद उसे अज्ञानी क्यों कहता है?

    केनोपनिषद् स्पष्ट करता है कि ब्रह्म असीम, अनंत और वाणी–विचार की सीमाओं से परे है।
    सच्चा ज्ञान अहंकारपूर्ण दावे में नहीं, बल्कि इस विनम्र स्वीकार में निहित है कि ब्रह्म को पूरी तरह जाना नहीं जा सकता।

    यह एपिसोड समझाता है कि आत्मज्ञान ही अमरत्व और जन्म–मृत्यु के चक्र से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है, और इसी जीवन में ब्रह्म की अनुभूति ही परम सत्य है।

    सुनिए
    एकादशोपनिषद प्रसाद में
    केनोपनिषद् द्वितीयः खण्डः : ज्ञान और अज्ञान का सूक्ष्म रहस्य।
    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।

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    15 分
  • केनोपनिषद प्रथम खण्ड — श्रोत्रस्य श्रोत्रं: ब्रह्म का गूढ़ रहस्य”
    2025/12/07

    इस एपिसोड में हम केनोपनिषद के प्रथम खण्ड का गूढ़ रहस्य समझते हैं—

    जहाँ उपनिषद उस परम प्रश्न का उत्तर देता है:

    “किसके द्वारा?”


    कौन हमारी वाणी को शक्ति देता है?

    किसके द्वारा मन सोचता है?

    कौन है जो कान, नेत्र और प्राण को जीवन देता है?


    उपनिषद का उत्तर है—

    ब्रह्म:

    श्रोत्रस्य श्रोत्रम् — कान का कान,

    नेत्रस्य नेत्रम् — आँख का आँख,

    वाणी की वाणी और प्राण का प्राण।


    ब्रह्म इंद्रियों से परे है,

    परंतु उन्हीं के माध्यम से प्रकट होता है।

    न वह “ज्ञात” है,

    न “अज्ञात”—

    वह दोनों से परे एक परम चेतना है।


    उपनिषद बताता है कि

    ब्रह्म का ज्ञान विचार से नहीं,

    बल्कि आत्म-अनुभूति से प्राप्त होता है,

    और यही अनुभूति मृत्यु के बंधन को काटकर

    अमरत्व की ओर ले जाती है।


    सुनिए इस दिव्य प्रसाद को—

    एकादशोपनिषद प्रसाद में।

    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।


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  • केनोपनिषद् मंगलाचरण: आत्म–ब्रह्म योग
    2025/11/30

    इस कड़ी में हम केनोपनिषद् के मंगलाचरण श्लोक का गहन मर्म समझते हैं—

    जहाँ साधक अपनी वाणी, प्राण और इंद्रियों के पुष्ट व पवित्र होने की प्रार्थना करता है।


    यह प्रार्थना बताती है कि

    इंद्रियों की शुद्धि, मन की स्थिरता और प्राण की शक्ति

    ब्रह्म ज्ञान को आत्मसात करने की अनिवार्य शर्तें हैं।


    मंगलाचरण का संदेश है—

    “मैं ब्रह्म को न नकारूँ, और ब्रह्म मुझे न नकारे।”

    यही आत्मा और परमात्मा की अद्वैत एकता है,

    जिसे वेदांत “आत्म–ब्रह्म योग” कहता है।


    इस श्लोक में त्रिविध शांति—

    आधिभौतिक, आधिदैविक, और आध्यात्मिक शांति—

    की भी प्रार्थना की गई है,

    जो उपनिषदों की वैश्विक शांति की दृष्टि को दर्शाती है।


    सुनिए एकादशोपनिषद प्रसाद के इस अध्यात्मिक एपिसोड में—

    “केनोपनिषद् मंगलाचरण: आत्म–ब्रह्म योग”

    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।


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    16 分
  • केनोपनिषद का परिचय
    2025/11/23

    आज से “एकादशोपनिषद प्रसाद” में एक नया अध्याय आरंभ हो रहा है —

    केनोपनिषद प्रसाद


    “केनोपनिषद” का अर्थ है —

    किसके द्वारा?

    यह उपनिषद उस आद्य प्रश्न से आरंभ होता है जो हमें ब्रह्म, चेतना और आत्मा के वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाता है।


    इस आरंभिक कड़ी में हम

    👉 एकादशोपनिषद प्रसाद श्रृंखला के उद्देश्य,

    👉 केनोपनिषद के स्वरूप,

    👉 उसके मुख्य प्रश्न “किसके द्वारा सोचते, देखते, अनुभव करते हैं?”

    👉 और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग

    — इन सबका परिचय प्राप्त करते हैं।


    लेखक रमेश चौहान बताते हैं कि

    ब्रह्म को इंद्रियों से नहीं,

    बल्कि जागृत चेतना और आत्मज्ञान से पहचाना जाता है।


    यह कड़ी उन साधकों के लिए है

    जो जानना चाहते हैं —

    “मैं कौन हूँ?

    मेरे भीतर कार्यरत शक्ति कौन है?

    और ब्रह्म के साथ मेरा क्या संबंध है?”


    ✨ नया अध्याय, नई यात्रा —

    हर सोमवार एकादशोपनिषद प्रसाद में।



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    16 分
  • ईशावास्योपनिषद् : पूर्णता और अद्वैत
    2025/11/16

    इस एपिसोड में प्रस्तुत है ईशावास्योपनिषद् का दिव्य मंत्र —

    “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं…”,

    जो ब्रह्म की अनंत, अखंड और पूर्ण प्रकृति का उद्घोष है।


    यह उपनिषद हमें बताता है कि ब्रह्म पूर्ण है,

    और उससे उत्पन्न यह समस्त सृष्टि भी पूर्ण है।

    पूर्ण से पूर्ण निकले, तो भी पूर्ण ही शेष रहता है—

    यही अद्वैत वेदांत का शाश्वत सत्य है।


    इस प्रसंग में हम समझते हैं कि

    कैसे “ईशावास्यमिदं सर्वं” का दृष्टिकोण

    हमारे भीतर समर्पण, समानता और गहन आत्मज्ञान को जागृत करता है।


    एपिसोड में माण्डूक्य उपनिषद, भगवद गीता और अन्य वेदांतीय दृष्टांतों के आधार पर

    ब्रह्म और सृष्टि की एकता तथा आत्मा के साथ उसका अभेद—

    अद्वैत—का अर्थ स्पष्ट किया गया है।


    सुनिए रमेश चौहान के साथ

    “ईशावास्य उपनिषद: पूर्णता और अद्वैत”

    एकादशोपनिषद प्रसाद के इस आध्यात्मिक एपिसोड में।

    ✨ नया एपिसोड हर सोमवार।


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  • ईशावास्योपनिषद का 18वां मंत्र :अग्नि से मोक्ष की अंतिम प्रार्थना
    2025/11/09

    आज के इस दिव्य प्रसंग में हम ईशावास्योपनिषद के 18वें मंत्र में निहित अग्निदेव से की गई मोक्ष की अंतिम प्रार्थना का गहन रहस्य समझते हैं। यह केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि आत्मा की अंतिम पुकार है—जहाँ साधक अग्निदेव से सत्य के श्रेष्ठ मार्ग (सुपथा) पर अग्रसर करने, पाप-दोषों के दहन और अंततः मोक्ष प्रदान करने की प्रार्थना करता है।


    इस एपिसोड में आप जानेंगे—

    🔥 अग्नि को मोक्ष का मार्गदर्शक क्यों कहा गया?

    ✨ आत्मशुद्धि और पाप-दहन का आध्यात्मिक विज्ञान

    🕉️ मोक्ष यात्रा में अग्नि, आत्मा और सत्य का संबंध

    📜 भगवद्गीता और कठोपनिषद से इसकी दार्शनिक पुष्टि


    यह प्रसंग जीवन, मृत्यु और अंतिम मुक्ति के सबसे गहरे रहस्यों को खोलता है।

    आइए, आत्मा की अंतिम साधना—अग्नि से मोक्ष की प्रार्थना—की अनुभूति करें।


    🎬 YouTube: चेतना संवाद

    🎧 Podcast: Ekadashopanishad Prasad


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  • शरीर का अंत और आत्मा का अमरत्व | ईशावास्योपनिषद् श्लोक 17 | आत्मा की शाश्वत यात्रा
    2025/11/02

    ईशावास्योपनिषद् के सत्रहवें श्लोक में प्रस्तुत है एक गहन सत्य — शरीर नश्वर है, किंतु आत्मा अमर है।

    यह श्लोक बताता है कि मृत्यु केवल देह का अंत है, आत्मा की यात्रा का नहीं।

    शरीर भस्म में विलीन होता है, पर आत्मा शाश्वत, अविनाशी और प्रकाशमयी बनी रहती है।

    सुनिए रमेश चौहान के साथ एकादशोपनिषद प्रसाद के इस प्रेरक एपिसोड में —

    जहाँ मृत्यु नहीं, आत्मा के अमरत्व का बोध केंद्र में है।

    नया एपिसोड हर सोमवार

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