केनोपनिषद प्रथम खण्ड — श्रोत्रस्य श्रोत्रं: ब्रह्म का गूढ़ रहस्य”
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इस एपिसोड में हम केनोपनिषद के प्रथम खण्ड का गूढ़ रहस्य समझते हैं—
जहाँ उपनिषद उस परम प्रश्न का उत्तर देता है:
“किसके द्वारा?”
कौन हमारी वाणी को शक्ति देता है?
किसके द्वारा मन सोचता है?
कौन है जो कान, नेत्र और प्राण को जीवन देता है?
उपनिषद का उत्तर है—
ब्रह्म:
श्रोत्रस्य श्रोत्रम् — कान का कान,
नेत्रस्य नेत्रम् — आँख का आँख,
वाणी की वाणी और प्राण का प्राण।
ब्रह्म इंद्रियों से परे है,
परंतु उन्हीं के माध्यम से प्रकट होता है।
न वह “ज्ञात” है,
न “अज्ञात”—
वह दोनों से परे एक परम चेतना है।
उपनिषद बताता है कि
ब्रह्म का ज्ञान विचार से नहीं,
बल्कि आत्म-अनुभूति से प्राप्त होता है,
और यही अनुभूति मृत्यु के बंधन को काटकर
अमरत्व की ओर ले जाती है।
सुनिए इस दिव्य प्रसाद को—
एकादशोपनिषद प्रसाद में।
✨ नया एपिसोड हर सोमवार।
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