• Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 37
    2025/05/06

    This verse, Bhagavad Gita 11.37, is part of the Vishwaroop Darshan (Universal Form) chapter, where Arjuna glorifies Lord Krishna after witnessing His cosmic form. Arjuna acknowledges Krishna as the Supreme Being, the origin of all creation, even greater than Brahma. He expresses wonder at Krishna’s infinite, eternal, and transcendental nature, describing Him as the Lord of all gods and the ultimate refuge of the universe.

    This shloka reflects devotion, surrender, and realization of Krishna’s divine supremacy in the Bhagavad Gita. It emphasizes the eternal nature of the Supreme Lord, who transcends both the material (sadasat) and the spiritual realms.

    #BhagavadGita #LordKrishna #Vishwaroop #KrishnaConsciousness #SanatanDharma #DivineWisdom #Spirituality #HinduScriptures #EternalTruth #KrishnaBhakti #GitaTeachings #HolyVerses #BhaktiYoga #Dharma #UniversalForm

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 36
    2025/05/06
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 36संस्कृत श्लोक: "अर्जुन उवाच |स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्याजगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च |रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्तिसर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा: || 36||" "अर्जुन ने कहा – हे हृषीकेश! आपकी महिमा का प्रचार होने से यह संपूर्ण जगत प्रसन्न हो जाता है और उसकी आत्मा प्रसन्नतापूर्वक आपकी पूजा करती है। राक्षसों के समूह भी भयभीत होकर दिशाओं में भागते हैं, और सिद्धों के समूह आपका अभिवादन करते हैं।" 👉 "स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या" – अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को संबोधित करते हुए कहते हैं कि जब आपका नाम और आपकी महिमा फैलती है, तो यह जगत खुशी से भर जाता है।👉 "जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च" – आपके नाम से सम्पूर्ण संसार के प्राणियों के हृदय में उल्लास का संचार होता है।👉 "रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति" – राक्षसों के दल डर से दिशाओं में भाग जाते हैं। इस वाक्य में यह स्पष्ट होता है कि भगवान श्री कृष्ण के दिव्य रूप और शक्ति से राक्षस भी भयभीत हो जाते हैं।👉 "सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा:" – सभी सिद्ध और महान आत्माएं, जो उच्च अवस्था में हैं, भगवान श्री कृष्ण के सामने सिर झुका कर उनका सम्मान करती हैं। ✍️ सरल शब्दों में:यह श्लोक भगवान श्री कृष्ण के महान रूप को व्यक्त करता है, जिससे संसार में हर जीव को खुशी मिलती है और राक्षसों को भय का अनुभव होता है। सिद्ध और देवता भी उनकी महिमा का सम्मान करते हैं। ✅ यह श्लोक यह दर्शाता है कि भगवान श्री कृष्ण की महिमा से सम्पूर्ण ब्रह्मांड उत्साहित और भयमुक्त हो जाता है। भगवान का रूप इतना महान है कि वह सभी प्राणियों के दिलों में श्रद्धा और सम्मान का संचार करता है।✅ यह श्लोक भगवान की अपार शक्ति और दिव्यता का प्रतीक है, जो सभी को सम्मान देने के साथ-साथ किसी भी बुराई या राक्षसी प्रवृत्ति को नष्ट कर देती है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 36🕉 भगवान श्री कृष्ण की महिमा से सम्पूर्ण संसार प्रसन्न हो जाता है और राक्षस भी भयभीत होकर दिशाओं में भागते हैं। सिद्धों के समूह उनका सम्मान करते हैं।🙏 भगवान की दिव्यता और शक्ति के सामने सभी सिर झुका कर उनकी पूजा करते हैं। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक ...
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 35
    2025/05/05
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 35संस्कृत श्लोक: "सञ्जय उवाच |एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्यकृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी |नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णंसगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य || 35||" "सञ्जय ने कहा – यह वचन सुनकर, केशव के शब्दों को, अर्जुन ने कृतज्ञ भाव से हाथ जोड़कर, कांपते हुए, डरते-डरते, माला पहनने वाले कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया।" 👉 "एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य" – इस श्लोक में सञ्जय अर्जुन के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के वचनों को सुनने के बाद की स्थिति का वर्णन कर रहे हैं। अर्जुन ने श्री कृष्ण के वचन सुने और उन वचनों का प्रभाव उस पर पड़ा।👉 "कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी" – अर्जुन ने हाथ जोड़कर, श्रद्धा और विनम्रता के साथ भगवान के वचनों को सुना और उसकी हालत इतनी गंभीर हो गई कि वह कांपने लगा। उसका मस्तक सुशोभित था, क्योंकि वह रक्षक और ईश्वर के प्रति अपनी पूरी श्रद्धा प्रकट कर रहा था।👉 "नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं" – उसने फिर से भगवान कृष्ण को प्रणाम किया।👉 "सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य" – अर्जुन कांपते हुए, भयभीत होकर, भगवान श्री कृष्ण के चरणों में झुका और उनसे आशीर्वाद लिया। ✍️ सरल शब्दों में:यह श्लोक यह बताता है कि भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों को सुनने के बाद अर्जुन पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा। वह कांपते हुए भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम करता है, उसकी आँखों में भय और श्रद्धा की मिश्रित भावना थी। ✅ यह श्लोक दर्शाता है कि अर्जुन का हृदय भगवान कृष्ण के वचनों से अभिभूत था। वह अपने कर्तव्य और कृष्ण के दिव्य रूप को समझते हुए, उनके चरणों में समर्पित हो गया।✅ यह श्लोक यह भी बताता है कि भगवान की उपस्थिति और उनकी दिव्य शक्ति के सामने हम किस प्रकार अपने अहंकार को छोड़कर, विनम्रता से शरण लेते हैं। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 35🕉 अर्जुन ने भगवान कृष्ण के वचनों को सुना और कांपते हुए, भयभीत और श्रद्धालु भाव से उनके चरणों में प्रणाम किया।🙏 श्रद्धा और विनम्रता के साथ भगवान के चरणों में शरण लें, यही जीवन का सर्वोत्तम मार्ग है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #Arjuna #KrishnaWisdom #Bhakti #DivineGuidance #SpiritualAwakening #FaithInGod #Hinduism #...
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 34
    2025/05/05
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 34संस्कृत श्लोक: "द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं चकर्णं तथान्यानपि योधवीरान् |मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठायुध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् || 34||" "द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण और अन्य योधा वीरों को मैंने पहले ही मार डाला है। तुम उन्हें हतोत्साहित न हो, तुम युद्ध करो और शत्रुओं को हराओ। तुम्हारी विजय निश्चित है।" 👉 "द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च" – श्रीकृष्ण ने बताया कि द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, जयद्रथ, कर्ण और अन्य महान योद्धा पहले ही मारे जा चुके हैं।👉 "कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्" – कर्ण और अन्य वीर योद्धाओं का संहार भी हो चुका है।👉 "मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा" – अर्जुन को कह रहे हैं कि तुम व्यथित मत हो, यह युद्ध पहले ही जीत लिया गया है।👉 "युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्" – अब तुम बस युद्ध करो, तुम्हारी विजय निश्चित है और शत्रु पराजित होंगे। ✍️ सरल शब्दों में:भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि युद्ध में जीत निश्चित है क्योंकि शत्रु पहले ही नष्ट हो चुके हैं। अर्जुन को केवल अपनी भूमिका निभानी है और युद्ध में विजय प्राप्त करनी है। ✅ भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह विश्वास दिलाया कि वह पहले से ही विजय प्राप्त कर चुके हैं, क्योंकि शत्रु पहले ही नष्ट हो चुके हैं। अब अर्जुन को केवल अपनी भूमिका निभानी है।✅ यह श्लोक यह समझाता है कि भगवान की योजना से कोई भी पराजित नहीं हो सकता है, अगर उसकी भूमिका सही तरीके से निभाई जाए। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 34🕉 भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि शत्रु पहले ही नष्ट हो चुके हैं। अर्जुन को केवल अपनी भूमिका निभानी है और विजय प्राप्त करनी है।🙏 विश्वास और धैर्य के साथ अपनी भूमिका निभाएं, आपकी विजय निश्चित है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #VictoryInLife #KrishnaWisdom #Arjuna #Hinduism #DivineGuidance #SpiritualAwakening #FaithInGod #GodsWill 📜 हिंदी अनुवाद:📝 व्याख्या (Explanation):🔎 निष्कर्ष (Conclusion):📌 Description (विवरण) for YouTube or Social Media:📌 Relevant Hashtags (हैशटैग्स)
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 33
    2025/05/04
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 33संस्कृत श्लोक: "तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्वजित्वा शत्रून्भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |मयैवैते निहता: पूर्वमेवनिमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् || 33||" "इसलिए, उठो और यश प्राप्त करो। शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य का भोग करो। ये सभी शत्रु पहले से ही मारे जा चुके हैं, मैं ही उनके संहार का कारण हूं। तुम तो केवल निमित्त (कारण) हो, हे सव्यसाचि!" 👉 "तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व" – श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अब तुम उठो और युद्ध में विजय प्राप्त करो।👉 "जित्वा शत्रून्भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्" – तुम शत्रुओं को हराकर समृद्ध राज्य का सुख भोगोगे।👉 "मयैवैते निहता: पूर्वमेव" – यह शत्रु पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं, उनका संहार पहले ही हो चुका है।👉 "निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्" – तुम केवल निमित्त (कारण) हो, तुम्हारी भूमिका केवल एक माध्यम की है, शेष काम मैं कर चुका हूं, तुम बस इसे घटित होने दो। ✍️ सरल शब्दों में:भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि शत्रु पहले से ही नष्ट हो चुके हैं, तुम केवल एक माध्यम हो। अब तुम उठो, शत्रुओं को हराओ और विजय प्राप्त करो, क्योंकि यह युद्ध भगवान की इच्छा से ही हो रहा है और तुम इसके कारण मात्र हो। ✅ भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि उनकी विजय निश्चित है, क्योंकि भगवान ने पहले ही शत्रुओं का संहार कर दिया है। अर्जुन को सिर्फ अपनी भूमिका निभानी है।✅ यह श्लोक यह दर्शाता है कि भगवान की योजना के अनुसार, हम जो कार्य करते हैं, वह पहले से निर्धारित होता है और हम उस कार्य के माध्यम मात्र होते हैं। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 33🕉 भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया कि शत्रु पहले से ही नष्ट हो चुके हैं, और अर्जुन को केवल युद्ध में अपना कर्तव्य निभाना है।🙏 भगवान की योजना के अनुसार कार्य करें और विजय सुनिश्चित है। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #जीवनकीयोजना #VictoryInLife #KrishnaWisdom #Arjuna #Hinduism #GodsWill #DivineGuidance #Yoga #SpiritualAwakening 📜 हिंदी अनुवाद:📝 व्याख्या (Explanation):🔎 निष्कर्ष (Conclusion):📌 Description (विवरण) for YouTube or Social Media:📌 Relevant Hashtags (हैशटैग्स):
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 32
    2025/05/04
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 32संस्कृत श्लोक: "श्रीभगवानुवाच |कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: |ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वेयेऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: || 32||" "श्रीभगवान ने कहा - मैं समय (काल) हूं, जो सभी लोकों का संहार करने के लिए इस समय प्रवृत्त हूं। सभी योधा, जो विभिन्न पक्षों पर स्थित हैं, वे मेरे बिना नष्ट हो जाएंगे।" 👉 "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो" – भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मैं समय हूं, जो संसार के संहार का कारण बनता हूं।👉 "लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:" – मैं इस समय उन सभी जीवों का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं जो इस पृथ्वी पर जन्मे हैं।👉 "ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे" – भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम और तुम्हारे साथ के सभी लोग, जो युद्ध में शामिल हैं, मेरी इच्छा के बिना नहीं बच सकते।👉 "येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा:" – वे सभी योद्धा जो विपरीत पक्ष में हैं, वे सब मेरे द्वारा नष्ट कर दिए जाएंगे, यह सुनिश्चित है। ✍️ सरल शब्दों में:भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मैं समय हूं, और मैं लोकों के संहार के लिए उपस्थित हूं। जो भी योधा युद्ध में भाग ले रहे हैं, वे मेरी इच्छा के अनुसार नष्ट हो जाएंगे, चाहे वे किसी भी पक्ष में हों। ✅ भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा कि समय (काल) के रूप में उनका उद्देश्य सभी को संहार करना है। कोई भी व्यक्ति, जो युद्ध में शामिल होगा, उसे भगवान के नियमानुसार मृत्यु का सामना करना पड़ेगा।✅ यह श्लोक यह दर्शाता है कि भगवान के आदेश और समय के अनुसार सभी घटनाएँ घटित होती हैं। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 32🕉 भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वे समय के रूप में संहारक शक्ति के रूप में इस युद्ध में सभी को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हैं।🙏 समय की शक्ति और भगवान के नियमन को समझें। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #काल #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #TimeIsPower #GodsWill #DivinePlan #Karma
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 31
    2025/05/03
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 31संस्कृत श्लोक: "आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद |विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् || 31||" "हे देववर, मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ, कृपया मुझे अपना आशीर्वाद दें। मुझे यह बताइए कि आप कौन हैं, जो इतने अद्भुत रूप में प्रकट हुए हैं। मैं यह जानना चाहता हूँ कि आपकी उत्पत्ति क्या है, क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं समझ पा रहा हूँ।" 👉 "आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो" – अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से विनती करता है कि वह उसे अपने रूप की पहचान बताए, क्योंकि वह जानना चाहता है कि यह अद्भुत रूप किसका है और इसे कैसे समझा जाए।👉 "नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद" – अर्जुन भगवान को प्रणाम करता है और उनसे प्रार्थना करता है कि वह कृपा करके प्रसन्न हों और उसे सही मार्ग दिखाएं।👉 "विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं" – अर्जुन कहता है कि वह भगवान के आदि रूप को जानने की इच्छा रखता है, क्योंकि वह भगवान की वास्तविकता और उत्पत्ति को समझना चाहता है।👉 "न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्" – अर्जुन भगवान के इस रूप को देख कर चकित है और कहता है कि वह भगवान के उद्देश्य और कार्यप्रवृत्तियों को नहीं समझ पा रहा है। ✍️ सरल शब्दों में:अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि वे उसे अपने रूप के बारे में बताएँ, क्योंकि वह भगवान के इस अद्भुत रूप को देखकर चकित है। अर्जुन जानना चाहता है कि भगवान के इस रूप की उत्पत्ति क्या है और उनके कार्यों का उद्देश्य क्या है। ✅ यह श्लोक अर्जुन के भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य रूप को देखने और समझने की इच्छा को व्यक्त करता है।✅ अर्जुन की जिज्ञासा और भगवान के रूप के प्रति उसकी श्रद्धा को दर्शाता है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 31🕉 अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके दिव्य रूप के बारे में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की।🙏 भगवान से कृपा की प्रार्थना करते हुए अर्जुन ने उनके आद्य रूप को जानने की इच्छा जाहिर की। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vishnu #DivineForm #SpiritualAwakening #HigherConsciousness #GodsDivinePower #Vishwarup #Krishna #Kurukshetra
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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 11 | श्री भगवद गीता अध्याय 11| श्लोक 30
    2025/05/03
    📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 1 1 श्लोक 30संस्कृत श्लोक: "लेलिह्यसे ग्रसमान: समन्ता- ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि: | तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो || 30||" "तुम अपने मुख से ज्वाला की भांति आग उगलते हुए सम्पूर्ण लोकों को निगल रहे हो,तेरी तेजोमयी किरणें सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित कर रही हैं और जलाते हुए तपते हुए दीखती हैं।" 👉 "लेलिह्यसे ग्रसमान: समन्ता- लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि:" – भगवान श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन करते हुए अर्जुन कह रहे हैं कि भगवान अपने मुख से अत्यंत प्रचंड ज्वाला की तरह समस्त लोकों को निगल रहे हैं। उनका रूप इतना भयंकर है कि वह सम्पूर्ण विश्व को संहार कर रहे हैं।👉 "तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं" – भगवान श्रीकृष्ण की तेजोमयी किरणें सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अपनी प्रभा से भर देती हैं और उसे आलोकित करती हैं।👉 "भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो" – भगवान के तेजस्वी रूप की आभा इतनी प्रचंड है कि वह सभी लोकों को जलाती हुई प्रतीत होती है। उनकी तेज़ी और शक्ति से सम्पूर्ण जगत द्रवित हो रहा है। ✍️ सरल शब्दों में:भगवान श्रीकृष्ण के रूप की जो भव्यता और शक्ति है, वह अत्यधिक प्रचंड और असाधारण है। उनकी मुख से निकली ज्वाला सम्पूर्ण लोकों को निगलने के लिए तैयार है, और उनकी तेजोमयी किरणों से सम्पूर्ण ब्रह्मांड आलोकित हो रहा है। यह दृश्य भय और आश्चर्यजनक है। ✅ यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की उस रूप को दर्शाता है, जिसमें वह संहारक के रूप में प्रकट होते हैं।✅ उनकी वह तेजस्विता और प्रचंड शक्ति सम्पूर्ण संसार को अर्पित करती है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 10 (विभूतियोग) - श्लोक 30🕉 भगवान श्रीकृष्ण के तेजस्वी रूप का वर्णन:"तुम अपने मुख से ज्वाला की भांति आग उगलते हुए सम्पूर्ण लोकों को निगल रहे हो,तेरी तेजोमयी किरणें सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित कर रही हैं और जलाते हुए तपते हुए दीखती हैं।"🙏 यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के प्रचंड रूप की महिमा को दिखाता है, जो संहारक रूप में भी अपनी दिव्यता का प्रदर्शन करते हैं। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #VibhutiYoga #Vedanta #Spirituality #DivineForms #ShreemadBhagwatGeeta #Mahabharat #HigherConsciousness #...
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