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サマリー
あらすじ・解説
📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 31संस्कृत श्लोक: "आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद |विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् || 31||" "हे देववर, मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ, कृपया मुझे अपना आशीर्वाद दें। मुझे यह बताइए कि आप कौन हैं, जो इतने अद्भुत रूप में प्रकट हुए हैं। मैं यह जानना चाहता हूँ कि आपकी उत्पत्ति क्या है, क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं समझ पा रहा हूँ।" 👉 "आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो" – अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से विनती करता है कि वह उसे अपने रूप की पहचान बताए, क्योंकि वह जानना चाहता है कि यह अद्भुत रूप किसका है और इसे कैसे समझा जाए।👉 "नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद" – अर्जुन भगवान को प्रणाम करता है और उनसे प्रार्थना करता है कि वह कृपा करके प्रसन्न हों और उसे सही मार्ग दिखाएं।👉 "विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं" – अर्जुन कहता है कि वह भगवान के आदि रूप को जानने की इच्छा रखता है, क्योंकि वह भगवान की वास्तविकता और उत्पत्ति को समझना चाहता है।👉 "न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्" – अर्जुन भगवान के इस रूप को देख कर चकित है और कहता है कि वह भगवान के उद्देश्य और कार्यप्रवृत्तियों को नहीं समझ पा रहा है। ✍️ सरल शब्दों में:अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि वे उसे अपने रूप के बारे में बताएँ, क्योंकि वह भगवान के इस अद्भुत रूप को देखकर चकित है। अर्जुन जानना चाहता है कि भगवान के इस रूप की उत्पत्ति क्या है और उनके कार्यों का उद्देश्य क्या है। ✅ यह श्लोक अर्जुन के भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य रूप को देखने और समझने की इच्छा को व्यक्त करता है।✅ अर्जुन की जिज्ञासा और भगवान के रूप के प्रति उसकी श्रद्धा को दर्शाता है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 31🕉 अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके दिव्य रूप के बारे में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की।🙏 भगवान से कृपा की प्रार्थना करते हुए अर्जुन ने उनके आद्य रूप को जानने की इच्छा जाहिर की। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक जानकारियों के लिए बेल आइकन दबाएं। #श्रीमद्भगवद्गीता #भगवद्गीता #गीता_सार #SanatanDharma #BhagavadGita #KrishnaWisdom #Hinduism #Vishnu #DivineForm #SpiritualAwakening #HigherConsciousness #GodsDivinePower #Vishwarup #Krishna #Kurukshetra