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Ramanand Sagar’s Ramayan Now As Podcast

Ramanand Sagar’s Ramayan Now As Podcast

著者: Tilak
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このコンテンツについて

Step into the timeless world of devotion and grandeur with this audio reimagining of Ramayan. Inspired by Ramanand Sagar’s cultural phenomenon, the podcast brings the epic alive through voice, music, and sound. Beginning with Baal Kaand—Rama’s divine birth, childhood, and sacred wedding—the journey moves into Ayodhya Kaand, capturing Kaikeyi’s demand, Rama’s exile, and Bharata’s devotion. Each episode offers not just a story, but an immersive spiritual experience filled with wisdom and divinity.Tilak スピリチュアリティ ヒンズー教
エピソード
  • BHARAT LAUTA SHRI RAM NISHANI LEKAR
    2025/10/29

    अयोध्या लौटने की विनती अस्वीकार किए जाने पर भरत मौन रह जाते हैं। रात को कैकेयी स्वयं राम की कुटिया में जाकर उनसे अनुरोध करती हैं कि यदि वह उन्हें माँ मानते हैं, तो उनकी आज्ञा का पालन करें और अयोध्या लौट चलें। परंतु राम तर्क देते हैं कि यदि वह उन्हें एक अपमानजनक जीवन देना चाहती हैं, तो वे लौटने को तैयार हैं। राम के उत्तर से कैकेयी निरुत्तर हो जाती हैं। अगले दिन सभा बुलाई जाती है। गुरु वशिष्ठ जनक से कहते हैं कि इस धर्मसंकट की घड़ी में केवल वे ही मार्गदर्शक बन सकते हैं। राम और भरत जनक के निर्णय का पालन करने का वचन देते हैं। भरत विनम्रता से राम का वन में ही राज्याभिषेक करने की विनती करते हैं। जनक भगवान शंकर का स्मरण कर निर्णय देते हैं कि प्रेम धर्म से परे होता है, और भरत का निष्कलंक प्रेम अधिक शक्तिशाली है। लेकिन प्रेम निःस्वार्थ होता है, वह कुछ माँगता नहीं, केवल देता है। वह भरत से कहते हैं कि वह राम से उनकी इच्छा पूछें और उसी का पालन करें। भरत राम से विनती करते हैं। राम भरत के प्रेम से प्रभावित होकर राज्य स्वीकार करते हैं, पर वनवास की अवधि पूर्ण होने तक राज्य संचालन का दायित्व भरत को सौंपते हैं। भरत राम से चरण पादुकाएं लेकर, उन्हें सिर पर धारण कर अयोध्या लौटते हैं और उन्हें सिंहासन पर रख राम के प्रतिनिधि रूप में शासन की घोषणा करते हैं और स्वयं नंदीग्राम में कुटिया बनाकर तपस्वी जीवन बिताते हुए राज्य का संचालन करने लगते हैं। पत्नी मांडवी भरत की सेवा करने की इच्छा से कुटिया आती हैं, पर भरत उन्हें माता कौशल्या की सेवा करने के लिए महल में वापस भेज देते हैं। इधर राम यह जानकर कि अयोध्यावासी चित्रकूट तक पहुँच चुके हैं, दंडकारण्य की ओर प्रस्थान करते हैं। कैकेयी, पश्चाताप की अग्नि में तपकर, भरत से मिलने नंदीग्राम आती हैं और कुटिया में रहने का आग्रह करती है, लेकिन भरत कैकेयी को कर्मों का फल स्वरुप पाई हुई पीड़ा को राजमहल में भोगने के लिए कहते है, क्योंकि उसके हृदय में अब भी कैकेयी के द्वारा किए गए प्रकरण की ज्वाला प्रज्वलित थी।

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    30 分
  • SHRI RAM NE NIBHAYA PITA KA VACHAN
    2025/10/27
    चित्रकूट में जब राम अपनी माताओं को सामने देखते हैं, वह भावुक हो जाते है। यह दृश्य इतना मार्मिक होता है कि वहाँ उपस्थित सभी जनों के हृदय करुणा, स्नेह और ग्लानि से भर जाते हैं। राम सबसे पहले माता कैकेयी के चरण स्पर्श करते हैं, जिसे देख कैकेयी आत्मग्लानि से काँप उठती हैं, पर राम उन्हें दोष मुक्त कर नियति का विधान बताते हुए उन्हें सांत्वना देते हैं। इसके पश्चात वे माता सुमित्रा और कौशल्या के चरण स्पर्श करते हैं। गुरु वशिष्ठ के निर्देश पर राम और लक्ष्मण, पवित्र मन्दाकिनी के जल और तिल से अपने दिवंगत पिता दशरथ के लिए तर्पण करते हैं, जिससे उनका श्रमण धर्म पूर्ण हो सके। रात्रि में धर्म, सेवा और परंपरा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत होता है - राम गुरु वशिष्ठ के चरण दबाते हैं, वहीं सीता तीनों माताओं की सेवा करती हैं। यह केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि भारतीय कुल परंपरा और स्त्री धर्म की जीवंत अभिव्यक्ति है। कैकेयी ग्लानि से भरकर सीता से कहती हैं कि वह राम से कहें कि उन्हें मृत्युदण्ड दें। सीता उन्हें प्रेमपूर्वक क्षमा करती हैं और शांत करती हैं। सुमित्रा, सीता से लक्ष्मण की सेवा के विषय में जानकर भावुक हो उठती हैं। अगले दिन गुरु वशिष्ठ सभा का आयोजन करते हैं। राम वचन देते हैं कि वे गुरु की आज्ञा मानेंगे, पर साथ ही कहते हैं कि वे केवल धर्म और नीति के अनुसार ही आदेश स्वीकार करेंगे। गुरु वशिष्ठ कहते हैं कि याचक नीति-अनीति नहीं देखता, केवल हृदय की पुकार सुनता है। वह भरत से आग्रह करते हैं कि वह अपना निवेदन रखें। भरत अत्यंत भावुक स्वर में राम से अयोध्या लौटने की विनती करते हैं, कैकेयी भी अपने वरदानों को वापस लेती हैं। राम स्पष्ट करते हैं कि अब वचन पालन ही उनका धर्म है, क्योंकि केवल राजा दशरथ के पास उन्हें रोकने का अधिकार था। भरत अन्न-जल त्याग कर राम की कुटिया के सामने धरने पर बैठने की घोषणा करते हैं। तभी चित्रकूट में जनक और सुनयना के आगमन का समाचार मिलता है। सभी आशान्वित हो उठते हैं कि शायद जनक राम को मनाने में सफल होंगे। सीता जब अपने माता-पिता से मिलती हैं, तो जनक भावुक हो जाते हैं, लेकिन बेटी के संस्कार देख गर्वित होते हैं। रानी सुनयना जनक से राम को मनाने का आग्रह करती हैं। भरत भी माता कौशल्या से राम को आदेश देने का अनुरोध करते हैं। ...
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    30 分
  • BHARAT CHALA APNE RAJA KO MANANE
    2025/10/24
    राजा दशरथ की अंत्येष्टि के पश्चात अगले दिन अयोध्या की राजसभा बुलाई जाती है, राजमुकुट सिंहासन पर रख हुआ होता है। शत्रुघ्न के साथ भरत के सभा में प्रवेश करने पर महर्षि वशिष्ठ भरत से कहते हैं कि महाराज दशरथ और भ्राता राम ने यह राज्य उसे सौंपा है, अब उसका कर्तव्य है कि वे सूर्यवंश की परंपरा निभाएं और राजसिंहासन को ग्रहण करें। भरत सभा से प्रश्न करते हैं कि जब राजा दशरथ ने राम को राज्य सौंपने की घोषणा की थी, तब सभी ने उसका समर्थन क्यों किया? मंत्री उत्तर देते हैं कि क्योंकि राम जैसा धर्मनिष्ठ राजा दुर्लभ होता है। तब भरत सभा से पूछते हैं कि जब ऐसे राजा को वनवास भेजा गया, तो आपने विरोध क्यों नहीं किया? यदि राम ही सबके योग्य राजा हैं, तो राजमुकुट लेकर वन चलें और वहीं उनका राज्याभिषेक करें। सभा उनकी निष्ठा से अभिभूत हो उठती है, वशिष्ठ उनकी सराहना करते हैं। भरत माता कौशल्या को भी साथ चलकर वन में राम का राज्याभिषेक करने के लिए मना लेते हैं। पश्चाताप से भरी कैकेयी के विनती करने पर कौशल्या उसे साथ ले चलने पर अपनी सहमति देती है, जिसे भरत स्वीकार कर लेते हैं। उर्मिला को जब माण्डवी यह शुभ समाचार देती है, तो उसका मन भी हर्ष से भर उठता है। अयोध्या की प्रजा, तीनों माताएं, मंत्रीगण, गुरू वशिष्ठ और सेना भरत के साथ वन के लिए प्रस्थान करते हैं। रास्ते में श्रंगवेरपुर आता है, जहाँ निषादराज गुह को भ्रम होता है कि भरत राम पर आक्रमण करने आ रहे हैं। लेकिन गाँव के पुरोहित की सलाह पर वे भरत से मिलते हैं और सच्चाई जानकर व्यथित हो उठते हैं। वे बताते हैं कि राम-सीता नंगे पाँव चित्रकूट गए हैं। यह जान भरत भी अब आगे नंगे पाँव चलने का निर्णय लेते हैं। और मार्ग में भारद्वाज मुनि का आशीर्वाद लेकर चित्रकूट पहुँच जाते हैं। कोल और भील लक्ष्मण को भरत की सेना के आगमन की सूचना देते हैं। लक्ष्मण पहले आक्रमण की आशंका से क्रोधित हो धनुष उठाते हैं, पर राम उन्हें रोक देते हैं। इस बीच भरत कुटिया में पहुँचते हैं और बड़े भाई राम के चरणों में गिर जाते हैं। राम उन्हें उठाकर हृदय से लगाते हैं। यह दृश्य देखकर लक्ष्मण आत्मग्लानि से भर उठते हैं और भरत के प्रति उठे अपने गलत विचारों के लिये उनसे क्षमा माँगते हैं। चारों भाईयों का आपस में मिलाप होता है। जब भरत राम को यह ...
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    30 分
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