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BHARAT CHALA APNE RAJA KO MANANE

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राजा दशरथ की अंत्येष्टि के पश्चात अगले दिन अयोध्या की राजसभा बुलाई जाती है, राजमुकुट सिंहासन पर रख हुआ होता है। शत्रुघ्न के साथ भरत के सभा में प्रवेश करने पर महर्षि वशिष्ठ भरत से कहते हैं कि महाराज दशरथ और भ्राता राम ने यह राज्य उसे सौंपा है, अब उसका कर्तव्य है कि वे सूर्यवंश की परंपरा निभाएं और राजसिंहासन को ग्रहण करें। भरत सभा से प्रश्न करते हैं कि जब राजा दशरथ ने राम को राज्य सौंपने की घोषणा की थी, तब सभी ने उसका समर्थन क्यों किया? मंत्री उत्तर देते हैं कि क्योंकि राम जैसा धर्मनिष्ठ राजा दुर्लभ होता है। तब भरत सभा से पूछते हैं कि जब ऐसे राजा को वनवास भेजा गया, तो आपने विरोध क्यों नहीं किया? यदि राम ही सबके योग्य राजा हैं, तो राजमुकुट लेकर वन चलें और वहीं उनका राज्याभिषेक करें। सभा उनकी निष्ठा से अभिभूत हो उठती है, वशिष्ठ उनकी सराहना करते हैं। भरत माता कौशल्या को भी साथ चलकर वन में राम का राज्याभिषेक करने के लिए मना लेते हैं। पश्चाताप से भरी कैकेयी के विनती करने पर कौशल्या उसे साथ ले चलने पर अपनी सहमति देती है, जिसे भरत स्वीकार कर लेते हैं। उर्मिला को जब माण्डवी यह शुभ समाचार देती है, तो उसका मन भी हर्ष से भर उठता है। अयोध्या की प्रजा, तीनों माताएं, मंत्रीगण, गुरू वशिष्ठ और सेना भरत के साथ वन के लिए प्रस्थान करते हैं। रास्ते में श्रंगवेरपुर आता है, जहाँ निषादराज गुह को भ्रम होता है कि भरत राम पर आक्रमण करने आ रहे हैं। लेकिन गाँव के पुरोहित की सलाह पर वे भरत से मिलते हैं और सच्चाई जानकर व्यथित हो उठते हैं। वे बताते हैं कि राम-सीता नंगे पाँव चित्रकूट गए हैं। यह जान भरत भी अब आगे नंगे पाँव चलने का निर्णय लेते हैं। और मार्ग में भारद्वाज मुनि का आशीर्वाद लेकर चित्रकूट पहुँच जाते हैं। कोल और भील लक्ष्मण को भरत की सेना के आगमन की सूचना देते हैं। लक्ष्मण पहले आक्रमण की आशंका से क्रोधित हो धनुष उठाते हैं, पर राम उन्हें रोक देते हैं। इस बीच भरत कुटिया में पहुँचते हैं और बड़े भाई राम के चरणों में गिर जाते हैं। राम उन्हें उठाकर हृदय से लगाते हैं। यह दृश्य देखकर लक्ष्मण आत्मग्लानि से भर उठते हैं और भरत के प्रति उठे अपने गलत विचारों के लिये उनसे क्षमा माँगते हैं। चारों भाईयों का आपस में मिलाप होता है। जब भरत राम को यह ...
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