『SHRI RAM NE NIBHAYA PITA KA VACHAN』のカバーアート

SHRI RAM NE NIBHAYA PITA KA VACHAN

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このコンテンツについて

चित्रकूट में जब राम अपनी माताओं को सामने देखते हैं, वह भावुक हो जाते है। यह दृश्य इतना मार्मिक होता है कि वहाँ उपस्थित सभी जनों के हृदय करुणा, स्नेह और ग्लानि से भर जाते हैं। राम सबसे पहले माता कैकेयी के चरण स्पर्श करते हैं, जिसे देख कैकेयी आत्मग्लानि से काँप उठती हैं, पर राम उन्हें दोष मुक्त कर नियति का विधान बताते हुए उन्हें सांत्वना देते हैं। इसके पश्चात वे माता सुमित्रा और कौशल्या के चरण स्पर्श करते हैं। गुरु वशिष्ठ के निर्देश पर राम और लक्ष्मण, पवित्र मन्दाकिनी के जल और तिल से अपने दिवंगत पिता दशरथ के लिए तर्पण करते हैं, जिससे उनका श्रमण धर्म पूर्ण हो सके। रात्रि में धर्म, सेवा और परंपरा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत होता है - राम गुरु वशिष्ठ के चरण दबाते हैं, वहीं सीता तीनों माताओं की सेवा करती हैं। यह केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि भारतीय कुल परंपरा और स्त्री धर्म की जीवंत अभिव्यक्ति है। कैकेयी ग्लानि से भरकर सीता से कहती हैं कि वह राम से कहें कि उन्हें मृत्युदण्ड दें। सीता उन्हें प्रेमपूर्वक क्षमा करती हैं और शांत करती हैं। सुमित्रा, सीता से लक्ष्मण की सेवा के विषय में जानकर भावुक हो उठती हैं। अगले दिन गुरु वशिष्ठ सभा का आयोजन करते हैं। राम वचन देते हैं कि वे गुरु की आज्ञा मानेंगे, पर साथ ही कहते हैं कि वे केवल धर्म और नीति के अनुसार ही आदेश स्वीकार करेंगे। गुरु वशिष्ठ कहते हैं कि याचक नीति-अनीति नहीं देखता, केवल हृदय की पुकार सुनता है। वह भरत से आग्रह करते हैं कि वह अपना निवेदन रखें। भरत अत्यंत भावुक स्वर में राम से अयोध्या लौटने की विनती करते हैं, कैकेयी भी अपने वरदानों को वापस लेती हैं। राम स्पष्ट करते हैं कि अब वचन पालन ही उनका धर्म है, क्योंकि केवल राजा दशरथ के पास उन्हें रोकने का अधिकार था। भरत अन्न-जल त्याग कर राम की कुटिया के सामने धरने पर बैठने की घोषणा करते हैं। तभी चित्रकूट में जनक और सुनयना के आगमन का समाचार मिलता है। सभी आशान्वित हो उठते हैं कि शायद जनक राम को मनाने में सफल होंगे। सीता जब अपने माता-पिता से मिलती हैं, तो जनक भावुक हो जाते हैं, लेकिन बेटी के संस्कार देख गर्वित होते हैं। रानी सुनयना जनक से राम को मनाने का आग्रह करती हैं। भरत भी माता कौशल्या से राम को आदेश देने का अनुरोध करते हैं। ...
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