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サマリー
あらすじ・解説
📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 36संस्कृत श्लोक: "अर्जुन उवाच |स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्याजगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च |रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्तिसर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा: || 36||" "अर्जुन ने कहा – हे हृषीकेश! आपकी महिमा का प्रचार होने से यह संपूर्ण जगत प्रसन्न हो जाता है और उसकी आत्मा प्रसन्नतापूर्वक आपकी पूजा करती है। राक्षसों के समूह भी भयभीत होकर दिशाओं में भागते हैं, और सिद्धों के समूह आपका अभिवादन करते हैं।" 👉 "स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या" – अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को संबोधित करते हुए कहते हैं कि जब आपका नाम और आपकी महिमा फैलती है, तो यह जगत खुशी से भर जाता है।👉 "जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च" – आपके नाम से सम्पूर्ण संसार के प्राणियों के हृदय में उल्लास का संचार होता है।👉 "रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति" – राक्षसों के दल डर से दिशाओं में भाग जाते हैं। इस वाक्य में यह स्पष्ट होता है कि भगवान श्री कृष्ण के दिव्य रूप और शक्ति से राक्षस भी भयभीत हो जाते हैं।👉 "सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा:" – सभी सिद्ध और महान आत्माएं, जो उच्च अवस्था में हैं, भगवान श्री कृष्ण के सामने सिर झुका कर उनका सम्मान करती हैं। ✍️ सरल शब्दों में:यह श्लोक भगवान श्री कृष्ण के महान रूप को व्यक्त करता है, जिससे संसार में हर जीव को खुशी मिलती है और राक्षसों को भय का अनुभव होता है। सिद्ध और देवता भी उनकी महिमा का सम्मान करते हैं। ✅ यह श्लोक यह दर्शाता है कि भगवान श्री कृष्ण की महिमा से सम्पूर्ण ब्रह्मांड उत्साहित और भयमुक्त हो जाता है। भगवान का रूप इतना महान है कि वह सभी प्राणियों के दिलों में श्रद्धा और सम्मान का संचार करता है।✅ यह श्लोक भगवान की अपार शक्ति और दिव्यता का प्रतीक है, जो सभी को सम्मान देने के साथ-साथ किसी भी बुराई या राक्षसी प्रवृत्ति को नष्ट कर देती है। 📖 श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 (विश्वरूपदर्शनयोग) - श्लोक 36🕉 भगवान श्री कृष्ण की महिमा से सम्पूर्ण संसार प्रसन्न हो जाता है और राक्षस भी भयभीत होकर दिशाओं में भागते हैं। सिद्धों के समूह उनका सम्मान करते हैं।🙏 भगवान की दिव्यता और शक्ति के सामने सभी सिर झुका कर उनकी पूजा करते हैं। 📢 वीडियो को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें!🔔 नई आध्यात्मिक ...