पतंजलि के योगदर्शन में समाधि पाद पहला अध्याय है। इसमें ध्यान और समाधि के माध्यम से योग की अवधारणा और उसके मार्ग को स्पष्ट किया गया है। समाधि पाद में योग के सिद्धांतों, विभिन्न प्रकार की समाधि और उनके अनुभवों के बारे में बताया गया है। मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. **योग की परिभाषा**: योग को चित्तवृत्ति निरोध (मन की चंचलता को रोकना) के रूप में परिभाषित किया गया है।
2. **चित्तवृत्तियाँ**: चित्त (मन) की विभिन्न अवस्थाओं और उसके संचालन का वर्णन किया गया है, जिसमें पांच प्रकार की वृत्तियाँ शामिल हैं: प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा, और स्मृति।
3. **अभ्यास और वैराग्य**: चित्तवृत्ति निरोध के लिए अभ्यास (निरंतर प्रयास) और वैराग्य (आसक्ति से मुक्ति) को आवश्यक बताया गया है।
4. **संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात समाधि**: समाधि के दो मुख्य प्रकार बताये गए हैं - संप्रज्ञात समाधि (जिसमें विषय का ज्ञान रहता है) और असंप्रज्ञात समाधि (जिसमें सभी प्रकार का विषय-वस्तु समाप्त हो जाता है)।
5. **क्लेशों का वर्णन**: क्लेशों (मानसिक कष्ट) और उनके निवारण के उपायों का उल्लेख किया गया है।
6. **समाधि के प्रकार**: समाधि के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया गया है, जैसे सवितर्क, निरवितर्क, सविचार, निरविचार, सानंद और सास्मित समाधि।
समाधि पाद का मुख्य उद्देश्य साधक को योग की प्रारंभिक स्थिति से लेकर उच्चतम स्थिति समाधि तक के मार्ग को स्पष्ट करना है।
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