• Shri Bhagavad Gita Chapter 16 | श्री भगवद गीता अध्याय 16 | श्लोक 17

  • 2025/02/23
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Shri Bhagavad Gita Chapter 16 | श्री भगवद गीता अध्याय 16 | श्लोक 17

  • サマリー

  • श्लोक (Bhagavad Gita 16.17): आत्मसम्भाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता: |यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् || इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण उन व्यक्तियों का वर्णन कर रहे हैं जो आत्मसम्भावना (स्वयं को अत्यधिक महत्व देना), अहंकार (घमंड) और धन एवं मान के प्रति मद से प्रेरित होकर धर्म के कार्य करते हैं। वे निष्कलंक और निर्गुण कार्यों में विश्वास रखने के बजाय, दंभ और अभिमान से भरे हुए, सिर्फ नाममात्र के यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस प्रकार उनके द्वारा किए गए यज्ञ और कर्म वास्तविक उद्देश्य से भटककर सिर्फ बाहरी दिखावे के लिए होते हैं। आत्मसम्भाविता: स्तब्धा: यह उन व्यक्तियों को दर्शाता है जो अपने आत्मसम्मान और अहंकार के कारण अत्यधिक गर्व महसूस करते हैं। उनका मनुष्यत्व और कार्य दूसरों के सामने श्रेष्ठता दिखाने के उद्देश्य से होते हैं, न कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए। धनमानमदान्विता: इस भाग में यह बताया गया है कि वे लोग धन, मान और इज्जत के मद में आस्थापूर्वक और अहंकार के साथ कर्म करते हैं। वे स्वार्थ और इंद्रिय सुखों के लिए कर्म करते हैं, न कि प्रभु की भक्ति और धर्म के लिए। यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्: इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसे लोग निष्कलंक यज्ञों की बजाय दंभ और दिखावे के लिए यज्ञों का आयोजन करते हैं। उनके कर्म अर्थहीन और स्वार्थपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे बिना किसी सच्ची श्रद्धा और विधिपूर्वकता के किए जाते हैं। The Deeds Done for Show | Bhagavad Gita 16.17 In Bhagavad Gita 16.17, Lord Krishna reveals the nature of those who perform rituals and yajnas out of ego, pride, and the desire for wealth and honor.🔹 They are driven by self-importance and arrogance, believing themselves to be superior.🔹 Their actions are performed not for true spiritual growth but for worldly recognition.🔹 Such rituals are done with hypocrisy, lacking in genuine faith or adherence to the true spiritual path. This teaching serves as a reminder that true devotion and rituals should come from a place of sincerity, not for showing off or fulfilling personal desires. True DevotionSpiritual PathEgo and PrideHypocrisy in ReligionYajna and RitualsBhagavad Gita TeachingsFaith and Humility #BhagavadGita #EgoAndPride #TrueDevotion #SpiritualAwakening #Yajna #Hypocrisy #SelfRealization #FaithAndHumility अर्थ:व्याख्या:Social Media Content (Facebook & Instagram):Title:Description:Tags:Hashtags:
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あらすじ・解説

श्लोक (Bhagavad Gita 16.17): आत्मसम्भाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता: |यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् || इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण उन व्यक्तियों का वर्णन कर रहे हैं जो आत्मसम्भावना (स्वयं को अत्यधिक महत्व देना), अहंकार (घमंड) और धन एवं मान के प्रति मद से प्रेरित होकर धर्म के कार्य करते हैं। वे निष्कलंक और निर्गुण कार्यों में विश्वास रखने के बजाय, दंभ और अभिमान से भरे हुए, सिर्फ नाममात्र के यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस प्रकार उनके द्वारा किए गए यज्ञ और कर्म वास्तविक उद्देश्य से भटककर सिर्फ बाहरी दिखावे के लिए होते हैं। आत्मसम्भाविता: स्तब्धा: यह उन व्यक्तियों को दर्शाता है जो अपने आत्मसम्मान और अहंकार के कारण अत्यधिक गर्व महसूस करते हैं। उनका मनुष्यत्व और कार्य दूसरों के सामने श्रेष्ठता दिखाने के उद्देश्य से होते हैं, न कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए। धनमानमदान्विता: इस भाग में यह बताया गया है कि वे लोग धन, मान और इज्जत के मद में आस्थापूर्वक और अहंकार के साथ कर्म करते हैं। वे स्वार्थ और इंद्रिय सुखों के लिए कर्म करते हैं, न कि प्रभु की भक्ति और धर्म के लिए। यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्: इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि ऐसे लोग निष्कलंक यज्ञों की बजाय दंभ और दिखावे के लिए यज्ञों का आयोजन करते हैं। उनके कर्म अर्थहीन और स्वार्थपूर्ण होते हैं, क्योंकि वे बिना किसी सच्ची श्रद्धा और विधिपूर्वकता के किए जाते हैं। The Deeds Done for Show | Bhagavad Gita 16.17 In Bhagavad Gita 16.17, Lord Krishna reveals the nature of those who perform rituals and yajnas out of ego, pride, and the desire for wealth and honor.🔹 They are driven by self-importance and arrogance, believing themselves to be superior.🔹 Their actions are performed not for true spiritual growth but for worldly recognition.🔹 Such rituals are done with hypocrisy, lacking in genuine faith or adherence to the true spiritual path. This teaching serves as a reminder that true devotion and rituals should come from a place of sincerity, not for showing off or fulfilling personal desires. True DevotionSpiritual PathEgo and PrideHypocrisy in ReligionYajna and RitualsBhagavad Gita TeachingsFaith and Humility #BhagavadGita #EgoAndPride #TrueDevotion #SpiritualAwakening #Yajna #Hypocrisy #SelfRealization #FaithAndHumility अर्थ:व्याख्या:Social Media Content (Facebook & Instagram):Title:Description:Tags:Hashtags:

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