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आज यदि श्रीकृष्ण होते , तो भारत-पाक युद्ध के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या होता?

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आज यदि श्रीकृष्ण होते, तो भारत-पाक युद्ध के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या होता?लेखिका: कशिश गंभीरदो देशों के बीच युद्ध हो रहा है, और हां — हमें एक पक्ष लेना होगा। अपने लोगों, अपनी सीमाओं, अपनी संप्रभुता की रक्षा करना हमारा धर्म है। लेकिन किस कीमत पर?महाभारत के समय, श्रीकृष्ण कर्ण के पास एक नहीं, दो बार गए। वे जानते थे कि दुर्योधन का आत्मविश्वास कर्ण की शक्ति पर भारी रूप से निर्भर था। यदि कर्ण पांडवों के पक्ष में आ जाता, तो युद्ध शायद होता ही नहीं। यह श्रीकृष्ण की पहली रणनीति थी — एक प्रमुख योद्धा का हृदय बदलकर अनावश्यक विनाश को रोकना।इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, श्रीकृष्ण ने कर्ण को उसके जन्म का सत्य बताया — कि वह कुंती का ज्येष्ठ पुत्र है, खून से पांडव है। उन्होंने कर्ण की धर्मबुद्धि, प्रेम और अपनेपन को जागृत करने की कोशिश की। लेकिन कर्ण दुर्योधन के प्रति अपनी निष्ठा पर अडिग रहा। श्रीकृष्ण का प्रयास विफल रहा। और इस प्रकार, युद्ध हुआ।लेकिन श्रीकृष्ण ने हार नहीं मानी। उन्होंने फिर कुंती को प्रेरित किया — जो कर्ण की मां थीं — कि वह स्वयं जाकर उससे बात करें। कुंती और कर्ण की वह बातचीत महाभारत के सबसे हृदयविदारक क्षणों में से एक है। कुंती ने उससे प्रार्थना की कि वह पक्ष बदले, और एक मां के रूप में उनकासम्मान करे। फिर भी, कर्ण अपनी निष्ठा पर अडिग रहे, लेकिन उन्होंने वादा किया कि वह अर्जुन को छोड़कर किसी भी पांडव को हानि नहीं पहुंचायेंगे — ताकि युद्ध के बाद भी कुंती के पाँच पुत्र जीवित रहें।ये दोनों प्रयास सिर्फ दिखावा नहीं थे। ये श्रीकृष्ण की कोशिशें थीं, जो जानते थे कि सच्चा धर्म यह है कि युद्ध करने से पहले, उसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जाए।अगर श्रीकृष्ण आज जीवित होते, क्या वे यही नहीं करते? क्या उनका पहला कदम यही नहीं होता कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध को आम नागरिकों तक न पहुँचने दिया जाए?हमारा कर्म युद्धभूमि तक सीमित नहीं है। द्वापर युग की आत्माएँ आज भी अपने कर्मों का फल भोग रही हैं। यदि आप अपने चेतन स्तर को उठाएं, तो देख पाएँगे — हम वही कहानियाँ दोहरा रहे हैं, वही नैतिक द्वंद्वों का सामना कर रहे हैं, वही विकल्प चुन रहे हैं।इसलिए पहली रणनीति यही होनी चाहिए — कि संघर्ष को वहीं ...
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