
महावीर: तपस्या, सुधार और मोक्षमार्ग
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भगवान महावीर का जन्म एक समृद्ध और राजसी परिवार में हुआ, लेकिन बचपन से ही उनमें आध्यात्मिक जिज्ञासा और वैराग्य का भाव विद्यमान था। सांसारिक जीवन की क्षणभंगुरता को समझते हुए उन्होंने युवावस्था में ही गृह-त्याग कर कठोर तपस्या का मार्ग अपनाया।
उन्होंने अनेक वर्षों तक गहन साधना की और अंततः केवलज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त की। इस ज्ञान के बल पर उन्होंने संसार को अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य जैसे पंच महाव्रतों की शिक्षा दी।
महावीर को अक्सर जैन धर्म का संस्थापक कहा जाता है, किंतु वास्तव में वे इसके सुधारक और पुनःसंरक्षक थे। उन्होंने प्राचीन सिद्धांतों को न केवल स्पष्ट किया बल्कि उन्हें अधिक व्यवस्थित और व्यापक रूप दिया।
उनकी शिक्षाओं का मुख्य उद्देश्य था—मनुष्य को बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाना। इसके लिए उन्होंने "बारह अनुप्रेक्षाओं" (जीवन और मृत्यु, संसार की असारता, कर्मों के बंधन आदि पर चिंतन) की साधना का मार्ग बताया।
अंत में, महावीर ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी त्याग और समता की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत की और पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त हुए। उनका जीवन आज भी आत्मसंयम, करुणा और सत्य की खोज का प्रेरक प्रकाशस्तंभ है।
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