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दोहा प्रभाकर भाग दो- दोहा की वैदिक जड़ें: छंद शास्त्र का परिचय

दोहा प्रभाकर भाग दो- दोहा की वैदिक जड़ें: छंद शास्त्र का परिचय

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होस्ट: रमेश चौहान — शिक्षक, आध्यात्मिक चिंतक और लेखकइस एपिसोड में हम आपको लेकर चलते हैं एक अद्भुत यात्रा पर – जहां कविता केवल भावना नहीं बल्कि अनुशासन भी है। ‘दोहा प्रभाकर’ के इस दूसरे एपिसोड में जानिए कि छंद क्या है, इसका वैदिक महत्व क्यों है, और क्यों कहा जाता है कि छंद विहीन काव्य विकलांग होता है।

वेदों के छह अंगों में से एक 'छंद' को पाद (पैर) की संज्ञा दी गई है। इसी आधार पर यह कहा गया कि जैसे बिना पैरों के मनुष्य अपूर्ण है, वैसे ही छंद के बिना काव्य अपूर्ण होता है।

हम जानेंगे कि किस प्रकार वेद, स्मृति, पुराण और हिन्दी के महान ग्रंथों—जैसे रामचरितमानस, सूरसागर, बीजक—में छंदों ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। यह एपिसोड आपको समझाएगा कि दोहा मात्र कविता का रूप नहीं, बल्कि वेदों की परंपरा का एक जीवित अंश है।

साथ ही हम चर्चा करेंगे छंदशास्त्र की महत्त्वपूर्ण कड़ियों—जैसे कि मात्रा, वर्ण, तुकांतता और गेयता—पर जो किसी भी कवि या साहित्य प्रेमी के लिए आवश्यक हैं।

यदि आप दोहों को गहराई से समझना चाहते हैं और हिन्दी साहित्य की छंद परंपरा में रुचि रखते हैं, तो यह एपिसोड आपके लिए है।

🎧 सुनिए, समझिए और छंद-साहित्य के इस जीवंत स्वरूप को आत्मसात कीजिए।

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