• कर्मयोग: कर्म और कर्तव्य का रहस्य
    2025/08/05

    इस प्रेरणादायक एपिसोड में हम रमेश चौहान की पुस्तक "अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" के कर्मयोग खंड से अंश लेकर चर्चा करेंगे।
    श्रीमद्भगवद्गीता के अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से, हम जानेंगे कि कैसे व्यक्ति अपने कर्तव्यों को बिना किसी फल की इच्छा के निभाकर जीवन में शांति, संतुलन और पूर्णता पा सकता है।

    एपिसोड में विशेष रूप से इन विषयों पर प्रकाश डाला जाएगा:

    • कर्म, ज्ञान और भक्ति योग का आपसी संबंध

    • आधुनिक जीवन में कर्मयोग का महत्व

    • काम, क्रोध, अहंकार और इंद्रियों पर नियंत्रण

    • निष्काम भाव से कर्म करने का गीता का संदेश

    यह एपिसोड आपको न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध करेगा, बल्कि आपके रोज़मर्रा के जीवन में कर्मयोग के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा भी देगा।

    चाहे तो आप इस पुस्तक को पढ़ सकते हैं- https://amzn.in/d/a8A474i

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    6 分
  • सांख्य योग का परिचय
    2025/08/03

    इस एपिसोड में हम रमेश चौहान द्वारा रचित पुस्तक "अध्यात्मिक प्रबोधन : गीता के 18 योग" के तीसरे खंड "सांख्य योग: आत्मा और प्रकृति का ज्ञान" से महत्वपूर्ण विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं।
    भगवद्गीता के दूसरे अध्याय पर आधारित यह चर्चा आत्मा की अमरता, कर्तव्य के मार्ग, और सांख्य योग व कर्म योग के गहरे संबंध को उजागर करती है।
    श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवादों के माध्यम से आत्म-ज्ञान, विवेक और धर्म की नई दृष्टि प्राप्त करें।

    🕉️ यह एपिसोड उन सभी के लिए उपयोगी है जो भारतीय दर्शन, गीता के योगों, और आत्मिक जागरण में रुचि रखते हैं।

    सांख्य योग को विस्तार से समझने के लिये अध्यात्मिक प्रबोधन : गीता के 18 योग के इस भाग की पुस्तक खरीद सकते है-https://amzn.in/d/9dWFfYo#सांख्ययोग #गीता_का_ज्ञान #अध्यात्मिकप्रबोधन #रमेशचौहान #BhagavadGitaPodcast #GeetaWisdom #आत्मज्ञान #SpiritualAwakening #SanatanDharma #KarmaYoga #IndianPhilosophy #PodcastInHindi #VedanticWisdom #GeetaGyan #ShriKrishnaUpdesh

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    5 分
  • अर्जुनविषादयोग: कर्तव्य और आत्मज्ञान
    2025/08/01

    ''अध्यात्मिक प्रबोधन:गीता के 18 योग'' श्रृंखला पुस्तक की दूसरा भाग है अर्जुनविषादयोग । अर्जुनविषादयोग श्रीमद्भगवत गीता का प्रथम अध्याय है । कुरुक्षेत्र के रणभूमि में जब युद्ध का संकल्प पंडवों और कौरवों के मनों में प्रतिबिम्बित होने लगा, अर्जुन को मानवीय संदेह और आंतरिक द्वंद्व ने घेर लिया। वह अपने स्वजनों को सामने हे‌ते ही ह्रदयशून्‍य हो गया और शास्त्रों का सार—धर्म, कर्म, भक्ति, और ज्ञान—उस समय भी संसार की भूलभुलैया के समान प्रतीत हुआ। यही वह क्षण है जब अर्जुनविषादयोग कर्मयोग, भक्ति योग, ज्ञान योग आदि मार्गों के प्रारंभिक सूत्रधार की भूमिका निभाता है। यह अध्याय गीता का पहला योग नहीं है—पर यह वही प्रथम द्वंद्व है जिससे आशाओं को दीपक की पहली लौ मिलती है।

    यह एपिसोड श्रोताओं को गीता के मूल स्थर से जोड़ता है: एक ऐसा स्तर जहाँ धर्म का युद्ध बाहरी नहीं, आंतरिक है। अर्जुन का विषाद केवल भावनात्मक क्षणिका नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति की व्यथा है—जब मन नकारात्मकता में गिरता है और वह समझ खो बैठता है कि कर्तव्य क्या है।

    यह एपिसोड दर्शाता है कि अर्जुन वास्तविक अर्थ में हम सभी की प्रतिनिधित्व करते हैं। जब जीवन जुड़ता है, कर्तव्य सोशल एक्सेप्टेंस से, रिश्ते अपेक्षा से, और आत्मा विस्मृति से, तब वह व्यक्ति अर्जुन की तरह सांवली राह चुनता है।

    "क्या आपने कभी ऐसा अनुभव किया जब लक्ष्य स्पष्ट न हो, मन द्वंद्व में घिरा हो और निर्णय कारागार सा प्रतीत होता हो? अर्जुन ने वही महसूस किया— वही वह स्रोत भी है जहां जागृति आरंभ होती है।"

    यहां तक कि आधुनिक जीवन में युवा जाति अपनी नसों में अर्जुन की असमंजस की गूंज सुन सकती है—करियर बनाम परिवार, सामाजिक दायित्व बनाम आत्मिक लक्ष्य, सफलता बनाम संतोष—यह सार है इस एपिसोड का ।

    ''अध्यात्मिक प्रबोधन:गीता के 18 योग'' श्रृंखला पुस्तक की दूसरा भाग है अर्जुनविषादयोग को आप पढ़ सकते हैं-https://amzn.in/d/gbnMM4m

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  • भाग-2- गीता के 18 योग: अध्यात्मिक प्रबोधन और जीवन दर्शन
    2025/08/01

    होस्ट: रमेश चौहान — शिक्षक, आध्यात्मिक विचारक और लेखक

    इस भाग में हम ''अध्यात्मिक प्रबोधन:गीता के 18 योग'' के प्रस्तावना खण्ड का विश्लेषण कर रहे हैं, जो संपूर्ण ग्रंथ के लिये एक नींव का निर्माण करेगा । यह आने वाली कड़ियों को समझने के लिये एक सेतु का कार्य करेगा । संपूर्ण गीता का सांस्कृतिक, अध्यात्मिक महत्व के अतिरिक्त आधुनिक जीवन में इसकी सार्थकता और उपयोगिता पर ध्यान केन्द्रित करना और लोगों तक इसकी सार्थकता पहुँचना ही हमारा एक मात्र उद्देश्य है ।

    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

    इस चर्चा के आधार को विस्तार से समझने के लिये आप यह पढ़ सकते हैं- https://amzn.in/d/gAaWKzP

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    5 分
  • गीता के 18 योग: आत्म-साक्षात्कार की ओर एक यात्रा
    2025/07/31

    होस्ट: रमेश चौहान — शिक्षक, आध्यात्मिक चिंतक और लेखक"श्रीमद्भगवद्गीता" केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन की चुनौतियों, कर्तव्यों और आत्मिक यात्रा का अद्वितीय मार्गदर्शक है। इस परिचयात्मक एपिसोड में पुस्तक "अध्यात्मिक प्रबोधन: गीता के 18 योग" के सार को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आगामी कड़ियों में एक-एक योग अर्थात श्रीमद्भगवत गीता के एक-एक अध्याय पर चर्चा करेंगे ।

    यह शो 18 योगों की यात्रा को सरल, सहज एवं श्रवणीय रूप में प्रस्तुत करता है—जहाँ विषाद से भक्ति, कर्म से ज्ञान, और अंततः मोक्ष तक का मार्ग खुलता है। हर योग एक अध्यात्मिक सोपान है, जो साधक को आत्मबोध, शांति और दिव्य संतुलन की ओर ले जाता है।

    प्रस्तावना में बताया गया है कि गीता कैसे आधुनिक जीवन की दुविधाओं में भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी महाभारत काल में थी। इसमें कर्मयोग की निष्काम भावना, ज्ञानयोग की विवेक दृष्टि, और भक्ति योग की प्रेम-पूर्ण समर्पण भावना को सहज भाषा में समझाया गया है।

    इस पॉडकास्ट का उद्देश्य केवल शास्त्रों का पाठ करना नहीं, बल्कि उनके आत्मसात योग्य संदेश को जीवन में उतारने में आपकी सहायता करना है। श्रृंखला का स्वर विनम्र, आत्मीय और गंभीर है, जिससे यह श्रोता के मन में स्थायी प्रभाव छोड़ता है। चाहे आप अध्यात्म के मार्ग पर नए हों या वर्षों से अध्ययनरत, यह पॉडकास्ट आपकी आंतरिक यात्रा को नई दिशा देगा।

    शो का निर्माण साहित्य, दर्शन और आध्यात्मिक शिक्षा के गहन अध्ययन के आधार पर किया गया है, जो गीता को एक 'श्रवणीय ज्ञान ग्रंथ' के रूप में प्रस्तुत करता है। आप इस श्रवण यात्रा में जुड़े रहें, आत्ममंथन करें, और गीता के अमर संदेश को अपने हृदय में आत्मसात करें।

    यह एपिसोड केवल पुस्तक का सार नहीं, बल्कि आपकी आत्मा के भीतर झाँकने का एक आमंत्रण है।
    यदि आप जीवन में स्थिरता, आत्मबल और गहराई से जीने का मार्ग खोज रहे हैं—तो यह श्रृंखला आपके लिए है।

    "शब्द नहीं, आत्मा बोलेगी — गीता के योगों से!

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    7 分