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विद्या-अविद्या समन्वय से मोक्ष: ईशोपनिषद सार

विद्या-अविद्या समन्वय से मोक्ष: ईशोपनिषद सार

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このコンテンツについて

यह एपिशोड़ ईशोपनिषद प्रसाद नामक पुस्तक श्रृंखला के एक अंश से लिया गया है, जो विद्या और अविद्या से मोक्ष के सिद्धांत पर केंद्रित है। यह पाठ ईशोपनिषद के ग्यारहवें श्लोक ("विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह...") की गहन व्याख्या प्रस्तुत करता है, जिसका अर्थ है कि जो व्यक्ति विद्या (आत्मज्ञान) और अविद्या (सांसारिक ज्ञान) दोनों को एक साथ जानता है, वह अविद्या से सांसारिक बंधनों को पार करता है और विद्या से अमरत्व (मोक्ष) प्राप्त करता है। यह व्याख्या स्पष्ट करती है कि समन्वय का सिद्धांत आवश्यक है, जहाँ अविद्या भौतिक जीवन की बाधाओं को पार करने में मदद करती है, जबकि केवल विद्या ही मोक्ष की ओर ले जाती है। स्रोत अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों जैसे भगवद गीता और मुण्डक उपनिषद के संदर्भों के साथ इस दर्शन की तुलना करके इस सिद्धांत की पुष्टि करता है।

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