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サマリー
あらすじ・解説
यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय (भक्तियोग) का 18वाँ श्लोक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्तों के गुणों का वर्णन कर रहे हैं।
"सम: शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयो:।
शीतोष्णसुखदुःखेषु सम: सङ्गविवर्जित:॥"
"जो शत्रु और मित्र दोनों के प्रति समानभाव रखता है, मान और अपमान में सम रहता है, सर्दी-गर्मी, सुख-दुख में समान रहता है, और आसक्ति से रहित होता है—ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।"
संस्कृत श्लोक:हिंदी अनुवाद: