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サマリー
あらすじ・解説
यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय (भक्तियोग) का 16वाँ श्लोक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्तों के गुणों का वर्णन करते हैं।
"अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथ:।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय:॥"
"जो व्यक्ति अनपेक्ष (निष्काम), शुद्ध, दक्ष, उदासीन (अलग रहने वाला), व्यथा (दुख) से रहित और समस्त कार्यों के आरंभ का त्यागी है, वह मेरा प्रिय भक्त है।"