『RAJA DASHRATH KA HUA NIDHAN』のカバーアート

RAJA DASHRATH KA HUA NIDHAN

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श्री राम के समझाने पर अयोध्या वापस लौटे आर्य सुमन्त राजा दशरथ को समझाते हुए कहते है कि राम ने आपके लिए यही संदेश दिया है कि पिताश्री मेरी चिंता न करें, वरना मुझे दुख होगा। साथ ही भरत के लिए कहा है कि वह ऐसा कुछ न करें जिससे पिताश्री को दुख हो। इसलिए राम की खातिर दुख त्याग दीजिए। कौशल्या भी दशरथ को सांत्वना देने का प्रयास करते हुए कहती है राम, सीता और लक्ष्मण शीघ्र ही हमें अवश्य मिलेंगे। सुमन्त के वापस लौटने का समाचार लेकर कैकेयी के पास आई मंथरा उसे बताती है कि राम, सीता और लक्ष्मण गंगा पार करके वन में चले गए है। यह जानकर महाराज चुप है और किसी से कुछ नहीं कहते, कैकेयी अति प्रसन्न होती है। दशरथ को आभास हो जाता है कि उनका अंत समय आ गया है, वह अपनी पीड़ा कौशल्या से व्यक्त करते हुए कहते है कि कर्म का फल सबको भोगना पड़ता है, चाहे वह कितना भी बड़ा सम्राट हो। वह कौशल्या को श्रवण कुमार के अंधे पिता द्वारा दिया गए श्राप के बारे में स्मरण करते हुए बताते है कि विवाह पूर्व अपने यौवन के मद बहुत शिकार खेला करते थे और शब्द वेदी बाण चलाने के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार जब वह आखेट के लिए सरयू नदी के किनारे झाड़ियों में छिपकर में किसी जंगली जानवर के पानी पीने आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। पानी में हलचल की होने पर उन्होंने जो शब्दभेदी बाण चलाया, वह एक युवक के सीने पर जा लगा। वह युवक कोई और नहीं, अपने अंध माता पिता को तीर्थयात्रा कराने निकला श्रवण कुमार था। प्राण निकलने से पहले श्रवण कुमार दशरथ से प्रार्थना करता है कि उसके माता पिता प्यासे हैं। वे उन्हें जल अवश्य पिला दें। दशरथ कलश में जल लेकर श्रवण कुमार के अंध माता पिता के पास जाते हैं। वे पश्चाताप में डूबे हुए हैं। दशरथ के हाथों से कलश लेते समय हाथ का स्पर्श होने से अंधा पिता समझ जाता है कि आगन्तुक उसका पुत्र नहीं है। दशरथ उन्हें श्रवण की मृत्यु के बारे में बताते हैं। पुत्र के मौत का समाचार सुन उसकी माता बिना पानी पिये प्राण त्याग देती हैं। अंध पिता भी अपने प्राण त्यागने का निर्णय लेता है किन्तु मरने से पहले दशरथ को श्राप देता है कि वो भी उनकी तरह पुत्र वियोग में तड़प तड़प कर मरेंगे। इस पुरानी बात को स्मरण करते हुए दशरथ धरती पर गिर पड़ते हैं और राम राम कहते हुए अपने प्राण त्याग देते हैं। ...
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