エピソード

  • 'Baapu' by Ramdhari Singh Dinkar Ji.
    2023/06/03

    संसार पूजता जिन्हें तिलक,
    रोली, फूलों के हारों से ,
    मैं उन्हें पूजता आया हूँ
    बापू ! अब तक अंगारों से
    अंगार,विभूषण यह उनका
    विद्युत पीकर जो आते हैं
    ऊँघती शिखाओं की लौ में
    चेतना नई भर जाते हैं .
    उनका किरीट जो भंग हुआ
    करते प्रचंड हुंकारों से
    रोशनी छिटकती है जग में
    जिनके शोणित के धारों से .
    झेलते वह्नि के वारों को
    जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर
    सहते हीं नहीं दिया करते
    विष का प्रचंड विष से उत्तर .
    अंगार हार उनका, जिनकी
    सुन हाँक समय रुक जाता है
    आदेश जिधर, का देते हैं
    इतिहास उधर झुक जाता है
    अंगार हार उनका की मृत्यु ही
    जिनकी आग उगलती है
    सदियों तक जिनकी सही
    हवा के वक्षस्थल पर जलती है .
    पर तू इन सबसे परे ; देख
    तुझको अंगार लजाते हैं,
    मेरे उद्वेलित-जलित गीत
    सामने नहीं हों पाते हैं .
    तू कालोदधि का महास्तम्भ,आत्मा के नभ का तुंग केतु .
    बापू ! तू मर्त्य,अमर्त्य ,स्वर्ग,पृथ्वी,भू, नभ का महा सेतु .
    तेरा विराट यह रूप कल्पना पट पर नहीं समाता है .
    जितना कुछ कहूँ मगर, कहने को शेष बहुत रह जाता है .
    लज्जित मेरे अंगार; तिलक माला भी यदि ले आऊँ मैं.
    किस भांति उठूँ इतना ऊपर? मस्तक कैसे छू पाँऊं मैं .
    ग्रीवा तक हाथ न जा सकते, उँगलियाँ न छू सकती ललाट .
    वामन की पूजा किस प्रकार, पहुँचे तुम तक मानव,विराट .

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    14 分
  • Jo Beet Gayi so baat Gayi by Harivansh Rai Bachchan
    2023/06/03

    जो बीत गई सो बात गई
    जीवन में एक सितारा था
    माना वह बेहद प्यारा था
    वह डूब गया तो डूब गया
    अम्बर के आनन को देखो
    कितने इसके तारे टूटे
    कितने इसके प्यारे छूटे
    जो छूट गए फिर कहाँ मिले
    पर बोलो टूटे तारों पर
    कब अम्बर शोक मनाता है
    जो बीत गई सो बात गई
    जीवन में वह था एक कुसुम
    थे उसपर नित्य निछावर तुम
    वह सूख गया तो सूख गया
    मधुवन की छाती को देखो
    सूखी कितनी इसकी कलियाँ
    मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
    जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
    पर बोलो सूखे फूलों पर
    कब मधुवन शोर मचाता है
    जो बीत गई सो बात गई
    जीवन में मधु का प्याला था
    तुमने तन मन दे डाला था
    वह टूट गया तो टूट गया
    मदिरालय का आँगन देखो
    कितने प्याले हिल जाते हैं
    गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
    जो गिरते हैं कब उठतें हैं
    पर बोलो टूटे प्यालों पर
    कब मदिरालय पछताता है
    जो बीत गई सो बात गई
    मृदु मिटटी के हैं बने हुए
    मधु घट फूटा ही करते हैं
    लघु जीवन लेकर आए हैं
    प्याले टूटा ही करते हैं
    फिर भी मदिरालय के अन्दर
    मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
    जो मादकता के मारे हैं
    वे मधु लूटा ही करते हैं
    वह कच्चा पीने वाला है
    जिसकी ममता घट प्यालों पर
    जो सच्चे मधु से जला हुआ
    कब रोता है चिल्लाता है
    जो बीत गई सो बात गई

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    2 分
  • Krishna ki Chetavani by Ramdhari Singh Dinkar Ji. Audio by Vivek Prakash.
    2023/06/03
    वर्षों तक वन में घूम-घूम,बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,पांडव आये कुछ और निखर।सौभाग्य न सब दिन सोता है,देखें, आगे क्या होता है।मैत्री की राह बताने को,सबको सुमार्ग पर लाने को,दुर्योधन को समझाने को,भीषण विध्वंस बचाने को,भगवान् हस्तिनापुर आये,पांडव का संदेशा लाये।‘दो न्याय अगर तो आधा दो,पर, इसमें भी यदि बाधा हो,तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।हम वहीं खुशी से खायेंगे,परिजन पर असि न उठायेंगे!दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशीष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,भूमंडल वक्षस्थल विशाल,भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,सब हैं मेरे मुख के अन्दर।‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,शत कोटि दण्डधर लोकपाल।जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।‘भूलोक, अतल, पाताल देख,गत और अनागत काल देख,यह देख जगत का आदि-सृजन,यह देख, महाभारत का रण,मृतकों से पटी हुई भू है,पहचान, इसमें कहाँ तू है।‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,पद के नीचे पाताल देख,मुट्ठी में तीनों काल देख,मेरा स्वरूप विकराल देख।सब जन्म मुझी से पाते हैं,फिर लौट मुझी में आते हैं।‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,साँसों में पाता जन्म पवन,पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,हँसने लगती है सृष्टि उधर!मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,छा जाता चारों ओर मरण।‘बाँधने मुझे तो आया है,जंजीर बड़ी क्या लाया है?यदि मुझे बाँधना चाहे मन,पहले तो बाँध अनन्त गगन।सूने को साध न सकता है,वह मुझे बाँध कब सकता है?‘हित-वचन नहीं तूने माना,मैत्री का ...
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    5 分