『BHARAT KA KAKAYI PAR KRODH』のカバーアート

BHARAT KA KAKAYI PAR KRODH

BHARAT KA KAKAYI PAR KRODH

無料で聴く

ポッドキャストの詳細を見る

このコンテンツについて

राजा दशरथ के स्वर्गवास के पश्चात महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से मंत्री श्रीधर, भरत और शत्रुघ्न को अयोध्या बुलाने कैकय देश पहुँचते हैं। उधर भरत को लगातार अशुभ स्वप्न आते हैं, जिससे उनका मन व्याकुल हो उठता है। जब श्रीधर उन्हें महर्षि वशिष्ठ का संदेशा देते हैं कि उन्हें तत्काल अयोध्या लौटना है, तो भरत अपने नाना और मामा से आज्ञा लेकर शत्रुघ्न सहित अयोध्या के लिए वापसी करते हैं। अयोध्या पहुँचते ही उन्हें नगर का वातावरण गहरा और उदास लगता है। जहाँ कभी उनका स्वागत उल्लास और जयघोष से होता था, वहाँ अब लोग उनसे दृष्टि चुराते हैं। यह चुप्पी किसी बड़े संकट की आहट देती है। मंथरा को छोड़कर किसी को उनकी वापसी से प्रसन्नता नहीं होती। वह भरत को तुरन्त कैकेयी के कक्ष में ले जाती है, जहाँ कैकेयी विधवा वेश में बैठी होती हैं। भरत स्तब्ध रह जाते हैं और कारण पूछते हैं। कैकेयी निर्लिप्त भाव से कहती हैं कि राजा दशरथ अब नहीं रहे। भरत का हृदय इस वज्रघात से टूट जाता है। लेकिन जब उसे ज्ञात होता है कि राम को वनवास कैकेयी के वरदानों के कारण मिला, तो उनका क्षोभ फूट पड़ता है और जब कैकेयी गर्व से कहती हैं कि अब निष्कंटक राज्य भरत का है, तो वे उन्हें सत्ता लोभिनी, पितृघातिनी और भ्रातृवियोग का कारण बताकर तीखी बातें कहते हैं। शत्रुघ्न, मंथरा पर क्रोधित होकर उसे घसीटते हुए महल से बाहर ले जाने लगता हैं, जिसे भरत राम के नाम की दुहाई देकर रोक देते हैं। वे माता कौशल्या के पास जाते हैं, जो भरत से कहती हैं कि उन्हें राम के पास वन में भेज दें। भरत दुःखी होकर कहते हैं कि वे राम को अयोध्या वापस लाएँगे। ग्लानि से भरे भरत को लगता है कि भले पाप उसकी माँ ने किया हो, लेकिन इतिहास उन्हें भ्रातद्रोही कहेगा। वशिष्ठ उन्हें शोक त्यागकर राजा दशरथ का अंतिम संस्कार करने का आदेश देते हैं। सम्पूर्ण अयोध्या अंतिम यात्रा में सम्मिलित होती है। शत्रुघ्न पिता की चिता को अग्नि देते हैं, अस्थि विसर्जन के समय भरत भावुक हो जाते हैं, तब वशिष्ठ उन्हें मोह त्यागकर विधान पूरा करने का उपदेश देते हैं।

まだレビューはありません