Raag Darbari l राग दरबारी: शिवपालगंज की व्यंग्य गाथा | श्रीलाल शुक्ल का कालजयी उपन्यास (ऑडियो कहानी) part 2
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क्या एक गाँव पूरे देश का आईना हो सकता है?हिंदी साहित्य के महान व्यंग्यकार, श्रीलाल शुक्ल का कालजयी उपन्यास 'राग दरबारी' एक ऐसी ही कहानी है, जिसे सुनकर आप हँसेंगे भी और सोचेंगे भी।इतिहास का शोध छात्र रंगनाथ, शहर के आदर्शों से भरा, स्वास्थ्य लाभ के लिए अपने मामा वैद्यजी के गाँव शिवपालगंज पहुँचता है। वैद्यजी ऊपर से आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं, लेकिन असल में गाँव की राजनीति के बेताज बादशाह हैं।रंगनाथ जल्द ही देखता है कि जिस ग्रामीण सादगी की उसने कल्पना की थी, वह एक क्रूर यथार्थ है। शिवपालगंज की हर संस्था—सहकारी समिति, इंटर कॉलेज और यहाँ तक कि पुलिस थाना भी—वैद्यजी और उनके शागिर्दों, जैसे बद्री पहलवान और छोटे पहलवाल के इशारों पर नाचती है।यह उपन्यास स्वतंत्रता के बाद के भारत में पनपे भ्रष्टाचार, राजनीतिक तिकड़म, शिक्षा प्रणाली की दुर्दशा और एक आम आदमी की बेबसी पर एक तीखा व्यंग्य है। यह कहानी सिर्फ शिवपालगंज की नहीं, बल्कि हर उस जगह की है जहाँ शक्ति, छल और कपट के 'दरबारी राग' बजते हैं।सुनिए, रंगनाथ कैसे धीरे-धीरे अपने आदर्शों को टूटते देखता है और 'व्यवस्था' के इस संगीत में खुद को असहाय पाता है। #RaagDarbari #ShrilalShukla #HindiAudiobook #HindiNovel #PoliticalSatire #Vyangya #Shivpalganj #IndianLiterature #ClassicHindiStory