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धान के धनी चाचा E 7: रोपाई से पहले खेत की तयारी कैसे करें ? और क्या हैं इसके फायदे ?

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धान की फसल में कीट रोगों पर कैसे नियंत्रण करें? आइए जानते हैं

भारत में धान का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन दुनिया के कई देशों से काफी कम है। इसकी सबसे बड़ी वजह है धान की फसल में लगने वाले कीट व रोगों का सही समय पर नियंत्रण नहीं होना। वहीं, दुनियाभर में धान की फसल में लगने कीट तथा रोगों के प्रकोप से सालाना लगभग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कम होने का अनुमान है।

कवक के कारण लगने वाली प्रमुख बीमारियां-

ब्लास्ट रोग -

धान में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करते समय से लेकर फसल बढ़ने तक लग सकता है। यह बीमारी पौधे की पत्तियों, तना तथा गांठों को प्रभावित करता है। यहां तक कि फूलों में इस बीमारी का असर पड़ता है। पत्तियों में शुरूआत में नीले रंगे के धब्बे बन जाते हैं जो बाद में भूरे रंग में तब्दील हो जाते हैं। जिससे पत्तियां मुरझाकर सुख जाती है। तने पर भी इसी तरह के धब्बे निर्मित होते हैं।

कैसे करें नियंत्रण-

जैविक -इस रोग से रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड प्रति 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए। इसके अलावा बिजाई से स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरोसिस का लिक्विड फॉर्म्युलेशन की 5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

ब्राउन स्पॉट-

यह बीमारी नर्सरी में पौधे तैयार करते समय या पौधे में फूल आने के दो सप्ताह बाद तक हो सकती है। यह पौधे की पत्तियों, तने, फूलों और कोलेप्टाइल जैसे हिस्से को प्रभावित करता है। पत्तियों और फूलों पर विशेष रूप से लगने वाले इस रोग के कारण पौधे पर छोटे भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह धब्बे पहले अंडाकार या बेलनाकार होते है फिर गोल हो जाते हैं।

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