• माया: भ्रम और ब्रह्म भेद
    2025/08/27

    यह कडी "माया: भ्रम और ब्रह्म भेद" नामक पुस्तक से उद्धृत है, जो महर्षि मुक्त द्वारा रचित "श्रीमद्भागवत रहस्य" श्रृंखला का ग्यारहवाँ एपिसोड है। इसमें आत्मा और परमात्मा के अभेद को स्पष्ट किया गया है, जहाँ परमात्मा स्वयं को उपदेश देते हुए जीव को उसके वास्तविक स्वरूप से अवगत कराता है। यह दर्पण में दिखने वाले प्रतिबिंब के उदाहरण से समझाया गया है, जहाँ बिम्ब (परमात्मा) और प्रतिबिंब (जीव) का भेद केवल उपाधि (जैसे मन) के कारण होता है। स्रोत यह भी बताता है कि जाग्रत और स्वप्न अवस्था में जीव और ईश्वर की कल्पना मन के कारण होती है, जबकि सुषुप्ति में मन के अभाव के कारण ये भेद नहीं रहते। अंततः, यह माया की शक्ति को दर्शाता है, जो असंभव को संभव बनाकर नित्य, निरंश आत्मा में भी जीव, ईश्वर, वर्ण, आश्रम, लिंग और यहाँ तक कि देवी-देवताओं के भेद की कल्पना करवा देती है, जिससे ज्ञानी विद्वान भी मोहित हो जाते हैं।

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    16 分
  • अविज्ञात सखा पुरञ्जन जीव को उपदेश
    2025/08/25

    यह एपिशोड़ राजा पुरञ्जन के आख्यान का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है, जो जीव (आत्मा) और उसके अज्ञात मित्र परमात्मा के बीच के संबंध को दर्शाता है। यह कहानी एक रूपक के रूप में कार्य करती है, जहाँ राजा पुरञ्जन जीव का प्रतिनिधित्व करता है और उसका मित्र अविज्ञात परमात्मा का प्रतीक है। कहानी में एक नौ दरवाजों वाली नगरी (शरीर), एक सुंदरी (बुद्धि), ग्यारह योद्धा (इंद्रियां और मन), और पाँच सिर वाला सर्प (प्राण वायु) जैसे तत्व हैं, जो जीव के लौकिक जीवन और माया में आसक्ति को दर्शाते हैं। ग्रंथ इस बात पर जोर देता है कि मृत्यु के समय व्यक्ति जिस चीज से आसक्त होता है, उसी रूप को प्राप्त होता है, और यह भी कि परमात्मा को जानने के लिए जीव को अपने नाम और रूप का त्याग कर परमात्मा में विलीन होना पड़ता है, क्योंकि परमात्मा अविज्ञात है और उसे केवल वही जान सकता है जो स्वयं वही हो। अंततः, यह कथा आत्मज्ञान और जीव के कल्याण के लिए परमात्मा के उपदेशों को स्पष्ट करती है।

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    13 分
  • अज्ञान रूपी "ग्रंथि" का विमोचन
    2025/08/20
    "महर्षि मुक्त सूत्र" की इस कड़ी में हम प्रवेश करते हैं भागवत रहस्य प्रवचनमाला – दूसरे दिन के चयनित अंशों में।महर्षि मुक्त जी यहाँ गूढ़ उपनिषद एवं गीता-सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए ज्ञान और अज्ञान की शेष ग्रन्थि पर प्रकाश डालते हैं।एपिसोड के मुख्य बिंदु:काव्यात्मक चित्रण – "कल बल छल करि जाहिं समीपा..." जैसी पदावली के माध्यम से इन्द्रिय-द्वारों, विषय-वासनाओं और बुद्धि की स्थिति को दीपक-उदाहरण से स्पष्ट किया गया है।अविद्या की शेष ग्रन्थि – ‘अहं ब्रह्मास्मि’ की अनुभूति तक पहुँचने के बाद भी सूक्ष्म अहंकार कैसे शेष रह जाता है, इस पर गहन चर्चा।ज्ञान और अज्ञान का द्वंद्व – क्या ज्ञान स्वयं सत्य है या असत्य? यदि सत्य है तो ब्रह्म से भिन्न दूसरा सत्य हो जाएगा, और यदि असत्य है तो उससे अज्ञान कैसे मिटेगा?स्वप्न-दृष्टांत – स्वप्न में शेर और स्वप्न की बंदूक का उदाहरण देकर यह स्पष्ट किया गया कि असत्य से भी असत्य की निवृत्ति संभव है।उपनिषद का संकेत – केनोपनिषद के मंत्रों द्वारा ब्रह्मज्ञान के अकथनीय स्वरूप का विवेचन: जिसे जानने का दावा करने वाला वास्तव में नहीं जानता, और जो नहीं जानने की विनम्रता रखता है वही उसके निकट होता है।मुक्ति की अंतिम कुंजी – "मैं ब्रह्म हूँ" तक भी जो सूक्ष्म ग्रन्थि रह जाती है, उसे केवल साधन नहीं, बल्कि भगवत् कृपा ही खोल सकती है।भगवद्गीता का समर्थन – ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा (गीता 4/37) का उद्धरण लेकर दिखाया गया कि केवल विमल ज्ञान ही कर्म-बन्धन को भस्म करता है।मायापति की उपाधि – जब जीव ‘मैं ब्रह्म हूँ’ के अहंकार से भी परे होता है, तब वह मायापति बनकर शुद्ध आत्मस्वरूप में स्थित हो जाता है।एपिसोड का सार:ज्ञान तब तक अपूर्ण है जब तक "मैं जानता हूँ" या "मैं मुक्त हूँ" जैसी भावना भी शेष है। जब यह ग्रन्थि भी कट जाती है, तब आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में — बिना किसी संकल्प-विकल्प के, निःस्पृह, निःसंशय और निःसंग हो जाता है। यही सच्ची मुक्ति है, यही विमल ज्ञान है।#महर्षिमुक्तसूत्र #भागवतरहस्य #विमलज्ञान #अविद्याग्रन्थि #उपनिषदज्ञान #गीता_संदेश #भक्ति_वेदांत #SanatanDharma #SpiritualWisdom #BhagavadGita #VedantaPhilosophy"अगर आपको हमारा काम पसंद आ रहा है तो BuyMeACoffee पर सपोर्ट करें 👉https://buymeacoffee.com/ramesh.chauhan
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    6 分
  • आत्मबोध: अज्ञान से कृतकृत्य तक
    2025/08/15

    महर्षि मुक्त सूत्र पॉडकास्ट शो के इस आठवें एपिसोड में हम महर्षि मुक्त के श्रीमद्भागवत रहस्य के उन गूढ़ विचारों की चर्चा करेंगे जो आत्म-ज्ञान और अज्ञान के मूल अंतर को उजागर करते हैं। गीता के सशक्त श्लोकों के माध्यम से महर्षि मुक्त बताते हैं कि “कर्म का कर्ता और भोक्ता” होने का भाव अज्ञान का परिणाम है। जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी उससे अछूता रहता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति संसार में रहते हुए भी कर्म के बंधन से मुक्त रहता है।

    यह प्रवचन प्रारब्ध कर्मों के नाश और ज्ञानाग्नि से सभी कर्मों के भस्म होने के बीच के विरोधाभास को सुलझाता है। महर्षि स्पष्ट करते हैं कि सच्चे आत्म-बोध के क्षण में संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण – तीनों ही प्रकार के कर्म नष्ट हो जाते हैं।

    ग्रंथ देह, जीव और ब्रह्म के अध्यास को क्रमशः तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से जोड़ते हुए यह बताता है कि “मैं ब्रह्म हूँ” केवल एक भावना नहीं, बल्कि पूर्ण अनुभव और बोध का विषय है।

    अंततः, यह एपिसोड माया के उन सूक्ष्म विघ्नों को भी रेखांकित करता है जो आत्म-बोध की राह में बाधा बनते हैं, और यह संदेश देता है कि सच्ची कृतकृत्यता तभी आती है जब सभी भावनाएं निवृत्त होकर आत्मा अपनी पूर्णता को पहचान लेती है।

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    6 分
  • श्रीमद्भागवत रहस्य: कर्म, अज्ञान और विमल ज्ञान
    2025/08/12

    इस एपिसोड में हम श्रीमद्भागवत रहस्य (महर्षि मुक्त के प्रवचनों) के गहन विचारों की यात्रा पर निकलेंगे। चर्चा का केंद्र है जीवन के तीन प्रमुख कर्म प्रकारसंचित, प्रारब्ध और क्रियमाण — और उनसे जुड़ी बंधन-मुक्ति की प्रक्रिया।
    हम समझेंगे कि विमल ज्ञान कैसे अज्ञान के अंधकार को दूर कर, आत्म-साक्षात्कार के द्वार खोलता है। राजा प्राचीनबर्हि और भगवान नारद के संवाद से प्रेरणा लेते हुए, यह एपिसोड आपको अहंकार और वासनाओं से मुक्ति के महत्व से परिचित कराएगा।
    साथ ही, हम धर्म और अधर्म की सार्वभौमिक परिभाषा, अज्ञानी हृदय की सीमाएं, और आध्यात्मिक स्वतंत्रता पाने के व्यावहारिक उपायों पर भी प्रकाश डालेंगे।

    यह केवल शास्त्रीय चर्चा नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कालातीत दिशा है — जो आपके विचार, कर्म और दृष्टिकोण को बदल सकती है।


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    7 分
  • मैं कौन हूँ ?
    2025/08/10

    इस एपिसोड में हम महर्षि मुक्त द्वारा रचित "भगवत रहस्य" के प्रेरणादायक अंशों के माध्यम से आत्मा के शाश्वत और अपरिवर्तनीय स्वरूप की गहन पड़ताल करेंगे।

    आप जानेंगे —

    • ‘मैं’ का वास्तविक अर्थ और यह क्यों शरीर, मन या किसी भौतिक पहचान तक सीमित नहीं है।

    • कैसे आत्मा सभी अनुभवों की साक्षी होते हुए भी उनसे अछूती रहती है।

    • आत्मा का स्वभाव — जन्म और मृत्यु से परे, कारण और कार्य के बंधन से मुक्त

    • चेतना की तीन अवस्थाओं (जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति) में आत्मा की अखंड उपस्थिति।

    • आत्म-साक्षात्कार का महत्व और उत्तम पुरुष (परमात्मा) के रूप में स्वयं को पहचानने की साधना।

    यह कड़ी आपको भीतर की यात्रा पर ले जाएगी — स्वयं के असली स्वरूप को पहचानने और परमात्मा से एकत्व का अनुभव करने की ओर।

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  • आत्मा, शरीर और अज्ञान का पर्दा
    2025/08/08

    इस कड़ी में हम चर्चा करेंगे "श्रीमद्भागवत रहस्य: ज्ञान और मुक्ति का मार्ग" के उन गूढ़ और प्रेरणादायक विचारों की, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप की पहचान कराते हैं।

    महर्षि मुक्त द्वारा रचित और महर्षि मुक्तानुभूति साहित्य प्रचार समिति द्वारा प्रकाशित यह ग्रंथ सिखाता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं — हमारी असली पहचान नित्य, शुद्ध और अविनाशी आत्मा है।

    एपिसोड में हम जानेंगे:

    • शारीरिक पहचान से परे आत्म-ज्ञान का महत्व

    • क्यों ईश्वर-प्राप्ति भाग्य का खेल नहीं, बल्कि व्यक्तिगत संकल्प और सद्गुरु की कृपा का परिणाम है

    • अज्ञानता के अंधकार को मिटाने के उपाय

    • परम ज्ञान की ओर बढ़ने का व्यावहारिक मार्ग

    • आध्यात्मिक साधना में आंतरिक बदलाव और अनुभव

    यह एपिसोड न केवल शास्त्रीय ज्ञान का संकलन है, बल्कि आधुनिक साधकों के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शक भी है — जो आत्म-ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।

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    8 分
  • श्रीमद्भागवत रहस्य: ज्ञान और आत्म-तत्त्व"
    2025/08/05

    इस कड़ी में हम महर्षि मुक्त की पुस्तक "श्रीमद्भागवत रहस्य " के माध्यम से ज्ञान और आत्म-तत्त्व, आत्मा के स्वरूप और आत्मबोध की अनिवार्यता पर विमर्श करेंगे। विशेष रूप से चर्चा होगी चतुःश्लोकी भागवत पर—जो नारायण द्वारा ब्रह्मा को प्रदान किया गया वह दिव्य उपदेश है, जिसे बाद में महर्षि व्यास ने संपूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण का रूप दिया।

    राजर्षि खट्वांग और राजा परीक्षित जैसे उदाहरणों के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि आत्मज्ञान किसी विशेष काल की प्रतीक्षा नहीं करता—यह तत्काल भी संभव है। साथ ही, वेदांत के छह अंग और चार अनुबंध आत्मतत्त्व की गहराई को समझने के लिए किस प्रकार सहायक हैं, इस पर भी विस्तार से प्रकाश डाला जाएगा।

    प्रमुख विषय (Key Points):

    • आत्मा का स्वरूप और पहचान

    • चतुःश्लोकी भागवत की व्याख्या

    • ब्रह्मा और नारायण संवाद

    • व्यास द्वारा श्रीमद्भागवत की रचना

    • राजर्षि खट्वांग व परीक्षित के प्रसंग

    • वेदांत के छह लक्षण और चार अनुबंध

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