『क्यों लिखना पड़ता है मुसलमान को ठेले और दुकान पर अपना नाम』のカバーアート

क्यों लिखना पड़ता है मुसलमान को ठेले और दुकान पर अपना नाम

क्यों लिखना पड़ता है मुसलमान को ठेले और दुकान पर अपना नाम

無料で聴く

ポッドキャストの詳細を見る

このコンテンツについて

July 18, 2024, 11:42AM July 18, 2024, 11:42AM क्या आपको पता है कि मुज़फ़्फ़रनगर के ही एक सब्जी विक्रेता मोहम्मद यासीन ने 1950 में व्यवसाय करने की स्वतंत्रता के अधिकार का पहला मुकदमा जीता था और वह भी सुप्रीम कोर्ट का। इस केस का आज मुज़फ़्फ़रनगर में ठेले पर मुस्लिम नाम लिखने के विवाद से गहरा संबंध है। जब एक दुकानदार से कहा जाए कि वह अपने मुस्लिम नाम को बड़ा कर लिखे तो बाज़ार में उसे अलग-थलग किया जा रहा है। यह उसका चुनाव नहीं है। उससे कहा जा रहा है। यह अपने आप में आर्थिक बहिष्कार का मामला हो जाता है। मुज़फ़्फ़रनगर का प्रशासन भले कहे कि यह व्यवस्था के लिए किया जा रहा है क्योंकि कांवड़ यात्री कई बार भ्रम में पड़ जाते हैं और विवाद हो जाता है। कांवड़ लेकर जाने वाले यात्री असहिष्णु नहीं होते हैं। उनका ध्यान तो यात्रा पूरी करने में होता है। जब मुस्लिम समाज के लोग कांवड़ यात्रियों पर फूल माला बरसाते हैं तो कोई रास्ता नहीं बदल लेता है। इस वीडियो को पूरा देखिए।
まだレビューはありません