काव्य पाठ में: प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह की एक चर्चित हास्य नज़्म
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このコンテンツについて
सुरता साहित्य की धरोहर के अंतर्गत आज की यह प्रस्तुति श्रोताओं को साहित्य के उस पक्ष से रू-बरू कराती है, जहाँ हास्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन की सच्चाइयों का सधा हुआ व्यंग्य बन जाता है। आज के काव्य पाठ में प्रस्तुत है प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह की एक चर्चित हास्य नज़्म, जो नाई की दुकान जैसे साधारण दृश्य को केंद्र में रखकर मानवीय अहंकार, समय की अनिवार्यता और इच्छाओं के क्षरण को अत्यंत रोचक ढंग से अभिव्यक्त करती है।
उस्तरा, कैंची, जुल्फ़ें और आईना—ये सभी प्रतीक बनकर जीवन की उस सच्चाई की ओर संकेत करते हैं, जहाँ हर अकड़ और हर मोह अंततः समय के सामने झुक जाता है। नज़्म में हास्य के साथ-साथ एक सूक्ष्म दर्शन भी निहित है, जो श्रोताओं को मुस्कराते हुए आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करता है।
इस काव्य पाठ को और भी विशेष बनाती है इसकी प्रस्तुति, क्योंकि इस हास्य नज़्म का वाचन स्वयं प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह की आवाज़ में किया गया है। उनकी सहज, लयात्मक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति शब्दों को जीवंत कर देती है और श्रोताओं को एक आत्मीय साहित्यिक अनुभव प्रदान करती है।
यह एपिसोड उन सभी श्रोताओं के लिए है जो साहित्य में केवल गंभीरता ही नहीं, बल्कि मुस्कान, व्यंग्य और जीवन की हल्की-सी चुभन को भी महसूस करना चाहते हैं।