वैष्णव भक्ति परंपरा के महान संत तोन्डरडिप्पोडी आलवार
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संत चरित्रावली के इस भावपूर्ण प्रसंग में आज हम आपको लेकर चलते हैं
वैष्णव भक्ति परंपरा के महान संत तोन्डरडिप्पोडी आलवार के जीवन की उस यात्रा पर, जहाँ पतन भी एक नई आध्यात्मिक ऊँचाई का द्वार बन जाता है।
एक समय वे गहन विद्वान और भगवान रंगनाथ के अनन्य भक्त थे, परंतु सांसारिक मोह और आकर्षण ने उन्हें भक्ति, वैराग्य और संचित संपत्ति—सबसे दूर कर दिया।
देवदेवी नामक नर्तकी के मोहपाश में फँसकर वे अपने पथ से भटक गए लेकिन जब पश्चात्ताप ने हृदय को झकझोरा, तब स्वयं भगवान रंगनाथ ने करुणा दिखाते हुए उन्हें कारागार से मुक्त कराया और आत्मग्लानि के माध्यम से फिर से भक्ति-पथ पर प्रतिष्ठित किया। संतों की चरण-धूलि को मस्तक पर धारण कर उन्होंने अपने जीवन को पूर्णतः ईश्वर-सेवा में अर्पित कर दिया— और तभी से वे कहलाए
तोन्डरडिप्पोडी आलवार।
यह कथा हमें सिखाती है कि ईश्वर की कृपा पाने के लिए पूर्णता नहीं, बल्कि सच्ची शरणागति और पश्चात्ताप ही पर्याप्त है।
🎧 सुनिए यह प्रेरक प्रसंग
और जानिए—
कैसे एक पथभ्रष्ट आत्मा ईश्वर की असीम अनुकम्पा से भक्ति का दीप बन जाती है।